सिद्धार्थ उपनिषद Page 101
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सनातन प्रश्न है कि ब्रह्मांड की रचना के पीछे किसका हाथ है . वैज्ञानिक अभी तक इसका उत्तर नहीं खोज पाए हैं . लेकिन सभी संत एकमत हैं कि ओंकार (शब्द ; नाद-नूर) से ब्रम्हाण्ड पैदा हुआ है . संत दादू कहते हैं- " शब्दै बंध्या सब रहै , शब्दै शब्द ही जाए . शब्दै ही सब उपजे , शब्दै सबै समाये . " अर्थात ओंकार से गृह-नक्षत्र परस्पर बंधे हैं . ओंकार के कारण ही एक दिन सब बिखर जायेंगे . ओंकार से सब पैदा होता है और ओंकार में अंततः सब समा जाते हैं . संत कबीर कहते हैं- " एक नूर ते सब जग उपजिया कउन भले को मंदे. " अर्थात परमात्मा के नूर से सारा जग पैदा हुआ है . जीसस कहते हैं शब्द से सारे ब्रह्मांड की रचना हुई है .
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ब्रह्मांड की तरह सनातन प्रश्न यह भी है कि सृष्टि अर्थात जीव-जंतुओं की रचना के पीछे किसका हाथ है ? भारत में ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता माना जाता है . विगत पच्चीस वर्षों में पश्चिम में सम्मोहन एवं उसके माध्यम से पूर्व जन्म पर खूब खोज हुई है . पश्चिम के सम्मोहनविदों ने , विशेषकर माइकल न्यूटन ने सैकड़ों लोगों का सम्मोहन कर यह निष्कर्ष निकाला है कि सृष्टि (जीव-जगत) की रचना ब्रह्मलोक (world of creation) में होती रही है .
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सृष्टि की रचना द्वंद्वात्मक है . गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं- " जड़-चेतन गुण-दोष मय , विश्व कीन्हीं करतार ." इसलिए सृष्टि में पुरुष है , तो स्त्री है . शुभ है तो अशुभ है . सज्जन हैं तो दुर्जन हैं . अच्छाई है तो बुराई है . जन्म है तो मृत्यु है . सृजन है तो विध्वंस है . बाढ़ है तो अकाल है . मिलन है तो वियोग है . राग है तो द्वेष है .