सिद्धार्थ उपनिषद Page 87
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सुमिरन कार्यक्रम तक शिव जी से लेना-देना है. परमपद के बाद फिर शिव जी से लेना-देना नहीं है. विष्णु जी से लेना-देना है. लेकिन क्या मतलब के लिए मित्रता करोगे. मतलबी तो हम सब कुछ न कुछ हैं. जैसे ब्रह्मा जी ने सबका स्पिरीट क्रिएट किया; कास्मिक मैट्रिक्स से थोडा मैटेरियल लिया और माइंड मैट्रिक्स से थोडा मैटेरियल लिया. और दोनों को मिलाकर स्पिरीट बनाया. फिर स्पिरीट जब बॉडी में आता है, तब जीव बनता है. तो ये कौन कर रहा है ? ये काम ब्रह्मा कर रहे हैं. अब जीव बन गया. अब यहाँ से जब मृत्यु होती है तो हम ब्रह्मलोक नहीं जाते. अब जाते हैं शिवलोक, तो सारी दुनियां यहाँ से शिवलोक फिर वहां से यहां आती-जाती रहती है. सारी दुनियां शिव जी की पूजा करती है, ब्रह्मा को कोई नहीं पूजता. ब्रह्मा जी से काम निकल गया, अब लेना-देना क्या है ? ये बड़ी कृतघ्नता है. ऐसे भी देखो ये सारे वनस्पति, पशु, पंछी आदि सब ब्रह्मा जी ने बनाये हैं. आज जो हमको ऑक्सीजन मिल रही है, वृक्षों की छाया मिल रही है, फल मिल रहे हैं. किसके कारण मिल रहे हैं ? शिव जी के कारण नहीं, विष्णु जी के कारण नहीं, ब्रह्मा जी के कारण. लेकिन ब्रह्मा जी का कोई मंदिर नहीं बनाता, ब्रह्मा जी को कोई नहीं पूजता. क्यों नहीं पूजता ? क्योंकि अब हमारा काम तो शिव जी से है न! शिव जी के मंदिर खूब बन रहे हैं, खूब पूजा-पाठ हो रहा है, क्योंकि मतलब है. और विष्णु जी से भी आज मतलब हो न हो कल तो मतलब होने वाला है. क्योंकि आध्यात्मिक जो डेवलपमेंट है विष्णु जी के हाथ में है. विष्णु के, राम के मंदिर शिव जी से कम हैं. क्योंकि अभी जिससे मतलब है उसको आदमी ज्यादा करता है. कल मतलब होने वाला है तो उसको थोडा दूर रखता है. मगर ये तो बड़ी मतलबी दुनिया हो गई जिससे से मतलब है उससे यारी है. होना तो ये चाहिए कि ब्रह्मा जी को भी धन्यवाद दें, सम्मान दें; कि आपने दुनियां बनाई, इतनी व्यवस्था करी, ये सब किया, हमारी स्पिरीट निर्माण किया, आप जो इतना सुन्दर-सुन्दर रचना कर रहे हो, तो आपको धन्यवाद. और फिर शिव जी को धन्यवाद, क्यों!!! क्योंकि गर्भ में भेजना, मृत्यु के बाद सारा इंतजाम करना . और जब तक जीवन है तब तक उनका पूरा विभाग मानीटरिंग करता है. अतः उनको भी धन्यवाद देना. अंत में विष्णुलोक में, परमपद के बाद, जहाँ संत रहते हैं.