सिद्धार्थ उपनिषद Page 86
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soul+ mind = spirit. इसको ऐसा कह सकते हो आत्मा और जीवात्मा. आत्मा, जीवात्मा और जीव. आत्मा हो गया स्वरुप. जीवात्मा हो गई स्पिरीट और जीव हो गया; स्पिरीट + बॉडी = जीव.
जिस जीवात्मा की ड्यूटी लग गई वो एंजेल हो गया, देव हो गया. और जिसकी ड्यूटी लग गई किसी को गाइड करने की वो हो गया स्पिरीट गाइड.जिसकी प्रकृति में ड्यूटी लग गई वो हो गया देवता. देवता का मतलब अब उसको प्रकृति का विभाग मिल गया; हवा का विभाग, जल का विभाग, अग्नि का विभाग, अकाल का विभाग. प्रेतात्मा वह जो स्पिरीट वर्ल्ड में नहीं गया. जो इसी लोक में किसी राग द्वेष में फंसकर इस गुरुत्वाकर्षण के अंतर्गत इसी लोक में रह गया.
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मै चैतन्य हूँ, यह पहला तल है. मैं पूर्ण का अंश हूँ, यह दूसरा तल है. पूर्ण मेरा ही विस्तार है, यह तीसरा तल है. कोई किसी का विस्तार नहीं है, यह चौथा तल है. निर्वाण समाधि तक ये चार enlightenment हैं. निर्वाण में मुक्ति नहीं है. सहज समाधि से मौन सुमिरन तक beyond enligtenment की यात्रा है, ये मुक्ति है. और परमपद है विष्णुलोक में entry.
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शिव परमपद को उपलब्ध हैं, उनकी ड्यूटी लग गई है स्पिरीट वर्ल्ड में. जैसे मान लीजिए आप सोनीपत I.G हैं और आपकी ड्यूटी लग गई जेल में, अब आप I.G जेल हो गये पर आप जेल में तो नहीं रह रहे हो. उसी तरह ब्रह्मा जी की ड्यूटी लग गई ब्रह्मलोक में, लेकिन वे परमपद में हैं. ये खेल बड़ा अनोखा है. लेकिन ओशोधारा मिस्ट्री स्कूल है, इसलिए हम सारी मिस्ट्री खोल रहे हैं.