सिद्धार्थ उपनिषद Page 85
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महाजीवन,परिवर्तन और नर्तन ये तीन चीजें शिव के जिम्में हैं. तुम कहते हो मृत्यु . शिव जी नहीं कहते हैं; वो परिवर्तन कहते हैं. परिवर्तन; बीज को मान लो, बीज वृक्ष बन गया. अंकुरण हो गया. तुम कहोगे बीज मर गया. लेकिन माली कहेगा बीज मरा नहीं, बीज में परिवर्तन हुआ, अंकुरण हुआ. तो दृष्टि की बात है.
महादेवी वर्मा कहती हैं - " बिखर कर कण-कण के लघु प्राण, गुनगुनाते रहते यह तान.
अमरता है जीवन का ह्रास, और मृत्यु जीवन का चरम विकास."
अगर मृत्यु न हो तो तुम्हारी आत्मा का विकास कैसे हो. परमपद तक जाओगे कैसे. तो हर मृत्यु परमपद की दिशा में एक चढ़ाई है.
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ओशोधारा में जो मैत्री संघ का मेम्बर है उसके लिए हम लोगों का समझौता हुआ है. पहले क्या होता था प्रेतबाधा से ग्रस्त जो आता था उसी की मदद कर देते थे. उन लोगों (जिन्नों) का 40 बन्दों का ग्रुप है. तो उन्होंने हम को छोड़कर हमारे बन्दों से कहलाना शुरू कर दिया - ये तो कोई तरीका नहीं है, जो आता है उसी की मदद करते हैं. 7 महीने में उन्होंने (जिन्नों) हमारे 25-30 बन्दों को पकड़ लिया. सब यही कह रहे थे अपने गुरु जी से बोलो कि मदद करना छोड़ दें. उनको तो हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन तुम लोगों को बर्बाद कर देंगे. तब ये फिर बड़ा मुश्किल हुआ. हमारे सब लोग कहने लगे छोड़ दो. लेकिन क्षत्रिय संस्कार है; हार मानना मेरे संस्कार में नहीं है. यहाँ तक की माँ (सदगुरु ओशो प्रिया) भी कहने लगीं, शैलेन्द्र जी भी कहने लगे - हमको समाधि कराने से मतलब है, इन सबसे पंगा लेने की क्या जरूरत है. हमारे सारे सिपहसालारों ने हथियार रख दिए. फिर मैंने सूफी बाबा को फोन लगाया और कहा मैं क्या करू. वे बोले - क्षत्रिय हो कि नहीं हो, डाउट है ? मैंने कहा नहीं बाबा डाउट तो नहीं है. उन्होंने कहा तलवार उठाओ . जब कलंदर साहब (सूफी बाबा) ने कह दिया!!! फिर जो मैंने उन लोगों को जो डोज देना शुरू किया, बाप-बाप कह पैरों पर गिर पड़े. उन्होंने कहा आप खास लोगों की मदद करें, आम लोगों की मदद न करें. और हमको बता दीजिए कि आपके खास बंदे कौन-कौन से हैं. तो हमने फैसला लिया कि खास लोग किसको कहें. तो यही परिभाषा हमने की जो ओशोधारा मैत्री संघ के सदस्य हैं वे हमारे खास लोग हैं. तो ये secret बात है कि ओशोधारा मैत्री संघ वहां से permitted है. और अगर गलती से उनको information नहीं मिली तो उस हालत में हम कह देते हैं, कि यह हमारा बंदा है.