सिद्धार्थ उपनिषद Page 84
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आत्मस्थ होना मोक्ष है. हरि में, गोविन्द में स्थित हो जाना परम पद है. मोक्ष का अर्थ है मैं हूँ; मैं आत्मा हूँ, यह मोक्ष है. और परमात्मा के साथ एकात्म हो जाना, गोविन्द के साथ एक हो जाना परमपद है.
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स्पिरीट गाइड को everything जीवंत जैसा फील करोगे. क्योंकि वास्तव में जीवंत है. जैसे एक कपडा पहने है एक कपडा नहीं पहने है, तो इससे जीवंतता में कोई फर्क पड़ता है क्या ? जो कपडा पहने हैं जरा ज्यादा जीवंत दिखता है कोई जैन मुनि हो जाए बिना कपडे का तो ज्यादा जीवंत नहीं दिखता है.मगर जीवंत तो है न ! जीवित तो है. तो जो स्पिरीट गाइड है, स्पिरीट है वह इतना ही जीवंत है जितना तुम. इससे कोई फर्क नहीं है, हम लोग कपडा पहने हैं शरीर का, वह कपडा नहीं पहने है शरीर का, फर्क इतना ही है. और हमसे वह ज्यादा शक्ति रखता है. शरीर के कारण हमारी सीमाएं है. दिल्ली भी जाना पड़े हमको 2 घंटा. उसको दिल्ली जाना पड़े 2 सेकेण्ड नहीं लगेगा.सूरजसे प्रकाश आने में 7 मिनट लगते हैं. और वह सेकण्डों में वहां पहुँच जायेगा. हम पहुँच जाएं तो वह जला देगा. उसको कुछ नहीं कर सकता. तो कौन ज्यादा पावरफुल है.