सिद्धार्थ उपनिषद Page 83
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पहली बात जो परंपरा का आरंभ करते हैं उन्हें विरोध झेलना पड़ता है. मैं जन्मों-जन्मों से दो नम्बरी हूँ. मुझे कभी किसी का विरोध नहीं झेलना पड़ा और इस जन्म में भी कोई विरोध झेलने का सवाल नहीं. जो पहला गुरु आता है, परंपरा को शुरू करता है; बुद्ध हों, नानक हों, जीसस हों, मोहम्मद हों, ओशो हों. जो नई चीज शुरू करता है, विरोध उसका होता है. हम कोई नई चीज नही शुरू कर रहें हैं. ओशो जो विरोध झेलना था नई चीज शुरू करके वे झेल चुके. अब हम लोगो का काम फल खाना है, मौज करना है. शुरू में पहले क्या करोगे जमीन खरीदोगे, जमीन एक्वायर करोगे तो जितना विरोध है फोंडेशन के पहले है. एक बार फोंडेशन शुरू फिर क्या विरोध है. ऐसे ही ओशो हमें फौंडेशन;जमीन का विरोध, गाँव वालों से झगडा वो सब तो वो कर चुके. हमें तो बिल्डिंग बनाना है और फ़्लैट बेचना है. हमारा कोई भी विरोध न ही अब तक हुआ और न ही आगे होगा. छोटे-मोटे छुट भैए हैं पर उनके विरोध का कोई मतलब नहीं. " बात परायों की मत पूंछों, हाय हमें अपनों का भय है."जब भी परंपरा शुरू होती है तो बुद्ध पुरुषों के जाने के बाद दो भागों में बंट जाती है. बुद्ध की परंपरा दो भागों में बंट गई - हीनयान और महायान. हीनयानी कहतें हैं अब किसी गुरु की जरुरत नहीं है, बुद्ध हो गए काफी है. बुद्ध के 100 enlightened शिष्यों में 99 ने कहा अब गुरु की जरुरत नहीं है. एक मंजूश्री खड़ा हो गया कि गुरु की तो जरुरत है. और मंजूश्री की परंपरा आज भी चल रही है, बाकी सब खत्म हो गयीं. मोहम्मद साहब के बाद बस एक सूफी परंपरा. मौला अली साहब ने कहा गुरु परंपरा की जरूरत है. बाकी सबने कहा कोई गुरु बनेगा तो मरेगा. तो आज तक मुसलमान सूफियों को मार रहें हैं. उसी तरह जीसस के जाने के बाद पीटर ने कहा गुरु परंपरा की जरुरत है. बाकी सबने कहा नहीं.
ऐसे ही जब ओशो विदा हुए; ओशो के सारे लोगों ने कहा अब गुरु की जरुरत नहीं. लेकिन ओशोधारा ने कहा नहीं गुरु की जरुरत है. तो छोटा-मोटा विरोध तो चलता रहेगा.
" अब हवाएं ही करेंगी रौशनी का फैसला, जिस दिये में जान है वो दिया रह जायेगा."
हम लोगों का काम बिलकुल आसान कर दिया हमारे परमगुरु ने. जो भी विरोध झेलना था झेल लिए. अब हम लोगों को दूध-मलाई खाना है. इसलिए अब उसकी चिंता तुम लोग मत करो. अपनी समाधि करो, सुमिरन करो और बहुत ही सुन्दर ढंग से परमपद की यात्रा करो.