सिद्धार्थ उपनिषद Page 82
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निश्चित ही मैं कहता हूँ - ओशोधारा के लोग दुनियां के सबसे सौभाग्यशाली लोग हैं. और केवल आज नहीं; आध्यात्म का इतिहास हजारों साल का है, कम से कम दस हजार साल है. लेकिन आध्यात्म; आध्यात्मिक यात्रा की जो सुविधा ओशोधारा में उपलब्ध कराई है, वो मनुष्यता के आध्यात्मिक इतिहास में कभी नहीं थी. न तो कृष्ण के जमाने में थी, न बुद्ध के ज़माने में थी, न महावीर के ज़माने में थी, न गोरख के ज़माने में थी. कभी थी ही नहीं.
पहले क्या होता था तुम जाते थे कुछ सवाल पूंछते थे,सत्संग होता था. आज सबसे बड़ी आध्यात्मिक धारा राधास्वामी की है. उससे बड़ी आध्यात्मिक धारा अभी नहीं है, करोड़ों लोग वहां पर हैं. मैंने उनके गुरु गुरिंदर सिंह से पूंछा - करीब 5-7 साल पहले मैं गया था अपनी संगत के साथ. हमने कहा कुछ साधना काहे नहीं कराते हैं. उन्होंने कहा आपने बोर्ड पढ़ा नहीं है, हम राधास्वामी सत्संग हैं. हम सत्संग करते हैं. वैसे भी आज कितने लोग आएं हैं आपको पता है, करीब 5 लाख लोग हैं. sunday के sunday. बाकी दिन भी 60-70 हजार रोज आतें हैं. आपके यहाँ 60-70 हजार रोज आयेंगे आप साधना करा पाओगे. मैंने कहा कि नहीं, 60-70 हजार तो छोड़ दो 6000 भी आयेंगे तो हमारे पास साधना कराने का उपाय ही नहीं है.बोले कि मजबूरी हमारी आप समझिए इसलिए तो हमने declared ही कर दिया है हम केवल सत्संग कराते हैं. साधना नहीं कराते. ईमानदार व्यक्ति हैं. दुनियां की जो सबसे बड़ी आध्यात्मिक धारा धरती पर सौ सालों से चली आ रही है; साधना नहीं होती वहां, केवल सत्संग होता है. साधना कराने का कोई इरादा भी नहीं है. और ओशोधारा में day one से साधना शुरू होती है. साधना छोड़ कुछ होता ही नहीं है.
ये जो प्रवचन हैं ये हमारी प्रेमपाती हैं; बुलाता हूँ कि आ जाओ. तुम हमारी प्रेमपाती पढते हो सुनते हो, आ जाते हो. हमारा उद्देश्य ये नहीं है. ये तो ऐसा ही हुआ कि निमंत्रण कार्ड बांटना मुख्य उद्देश्य हो गया. और निमंत्रण कार्ड में तुम आओ तो कुछ खिलाएं-पिलायें नहीं ऐसे विदा कर दें. निश्चित रूप से आज ओशोधारा में जो हो रहा है, कल लोग विश्वास नहीं कर पाएंगे. ऐसा भी होता है कि इतने सोपान! 21 तल समाधि के, 21 तल प्रज्ञा कार्यक्रम के; संसार में भी अपनी डालियाँ,पत्तियां फैलाओ, फूल खिलाओ. और परमात्मा की गहराई में अपनी जड़ों को ले जाओ. समाधि के द्वारा, सुमिरन के द्वारा. ऐसा संभव है क्या ? ऐसी परिकल्पना हो सकती है क्या ? कल की मनुष्यता विश्वास नहीं कर पायेगी. इसलिए अपने सौभाग्य पर तुम इतरा सकते हो.