सिद्धार्थ उपनिषद Page 81
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तुम क्या समझते हो गौतम बुद्ध, भगवान महावीर, शंकराचार्य, गुरु गोरखनाथ ये मूरख लोग थे. ये बड़े इंटेलिजेंट लोग थे. मोक्ष का मतलब क्या हुआ ? निर्वाण का क्या मतलब हुआ ? अपने संबंधों में कामना मत करें, संबंधों में मत उलझो ये है मोक्ष. संबंधों में सुख की तलाश नहीं करो. भीतर सुख की तलाश करो. लेकिन सारी दुनिया सुख की तलाश कहाँ करती है; संबंधों में - पिता जी हमें सुख देंगे, मां हमें सुख देगी बच्चा यहाँ से शुरू करता है. थोडा बड़े हुए तो पत्नी हमें सुख देगी, पति हमें सुख देगा और वृद्ध हो गए तो बेटा हमें सुख देगा. और बड़े हुए तो नाती-पोता हमें सुख देगा. अपेक्षा ही अपेक्षा.
इसलिए गौतम बुद्ध ने क्या कहा, महावीर ने क्या कहा - यह संसार छोड़ दो. ताकि इनसे आशा ही नहीं रह गई, तो आधी यात्रा पूरी हो गई. जिनसे कामना हो सकती थी उन्हें छोड़ दिया. अब बाकी आधी यात्रा परमानन्द गोविन्द से जुड गए, बस मोक्ष हो गया.
निर्वाण के दो पहलू हैं - सुख की जो आशा जो संसार से करते हो; परिवार से करते हो, संबंधों में करते हो वो छोड़ दो. और बाकी आधी यात्रा; स्वयं के भीतर गोविन्द का निवास है उससे जुड जाओ, और परम आनन्दित हो जाओ. पहला कठिन है, दूसरा कठिन नहीं हैं.
अब कबीर साहब ने झंझट पैदा कर दिया. बड़ा झंझट पैदा कर दिया. बड़ा खुरापाती व्यक्ति था. बनारसी था, भोजपुरिया था. भोजपुर का होना ही अनर्थ करने के लिए काफी था, उस पर बनारसी! कबीर साहब ने झंझट खड़ी कर दी कहा घर छोड़ने की कोई जरुरत नहीं. घरवाली के साथ रहकर भी परमात्मा को पाया जा सकता है. अब तुम झेलो इसको. झंझट जुलाहे ने खड़ी कर दी, बड़ी लंबी झंझट खड़ी कर दी. और हम सब उस झंझट के शिकार हैं.
अब यहाँ आते हो ऊर्जायित हो गए, आनंदित हो गए, सब ठीक है. फिर घर जाते हो प्रभावित हो जाते हो. इसलिए बड़े इंटेलिजेंट लोग थे; गौतम बुद्ध, गोरखनाथ, शंकराचार्य, पतंजलि, भगवान महावीर. क्या इंटेलिजेंस !!!
झंझट पहले ही स्टेप पर छोड़ दी, घोर झंझट. लेकिन अब तो झंझट खड़ी हो गई है. और ओशो ने भी सपोर्ट कर दिया इस झंझट को. अपने तो झंझट पाला ही नहीं. और हम सब को झंझट में फंसा दिया. लेकिन अब तो झंझट है, इसको undo नहीं कर सकते. बुद्ध के ज़माने में ठीक था, महावीर के जमाने में ठीक था.थोड़े से लोग थे खेती-बाड़ी थी.भिक्षाटन से काम चल जाता था. अब तो आध्यात्म की यात्रा में करोड़ों लोग चल रहे हैं. अब इतने भिखमंगे फिर से पैदा नहीं कर सकते है.
ऐसा समझ लो हम लोग नाव से किसी द्वीप में गए हैं, और नाव तोड़ दी गई है. उस द्वीप से वापस आने की कोई संभावना नहीं है. अब उस द्वीप पर रहना ही रहना है. इसलिए जो बुद्ध वाली नाव थी, महावीर वाली नाव थी, शंकराचार्य की नाव थी वो तोड़ दी गई है. हम लोग साधना के ऐसे द्वीप में आ गए हैं, जहाँ से लौटना संभव नहीं है. अब तुम चाहकर के भी संसार को झंझट कहो या जो कहो.अब छोड़कर तुम सब नहीं जा सकते. न मैं सलाह दे सकता हूँ. अब इस झंझट में रहकर ही जो करना है, करना. तो choice is bitween lesser evil and greater evil. कम बुरा और ज्यादा बुरे के बीच में चुनाव. अब अगर तुम अपना संसार छोड़कर हाथ में भिक्षापात्र उठाते हो, तो कदम-कदम पर धिक्कार है. कदम-कदम पर अपमान है. वो मार्ग तुम्हारे लिए अवरुद्ध है. संसारी की भी झिडकी खाओगे, अगर संसार छोड़ करके जाओगे. यहाँ केवल पत्नी की झिडकी खाओगे. वहां पूरे संसार की झिडकी खाओगे. क्या च्वाइस सुन्दर है ? पत्नी की झिडकी खाओ,बच्चों की झिडकी खाओ - बूढा बरबरा रहा है. तो छोटे से ही परिवार की झिडकी खानी है.और अगर तुमने परिवार छोड़ दिया तो पूरे संसार की झिडकी खाओगे.तो झिडकी तो खाना है. इधर भी झिडकी खाना है, उधर भी झिडकी खाना है.परिवार में रहकर कुआ है, उधर तो खाई है. तो ये अब तुम्हारी तपस्या है. पुराने ज़माने में परिवार छोड़ते थे लोग, जंगल में जाकर तपस्या करते थे. आज की तपस्या है जंगल को छोड़ दो परिवार में रहो. लोगों की धिक्कार सुनों और झिडकी खाओ. यही तपस्या है. निश्चित ऐसा होगा इसलिए यहाँ आकार मोबाइल चार्ज करा लो. पत्नी के पास जाओ बैटरी डिस्चार्ज करा लो. और फिर यहाँ हमारे पास आओ फिर मोबाइल चार्ज करेंगे. इसमें win-win deal है. तुम्हारी भी दुकान चलती रहेगी, हमारी भी.