सिद्धार्थ उपनिषद Page 76
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सारे संत उस बांसुरी की बात करते हैं, जो हमारी आत्मा में सदा-सदा से बज रही है. जिसको 'ध्यान-समाधि' में तुम सबने सुना है. ओशोधारा की पहली ही समाधि में 6 दिन के लिए जब तुम आते हो, तो पांचवें दिन वह बांसुरी सुनाई देती है. उद्वव ने जब वह बांसुरी सुनी तो हक्के-बक्के रह गए. कहा कि कृष्ण आप सखा हो, मित्र हो ! आपने गोपियों तक को वह बांसुरी सुना दी, और मुझे गीता में उलझाये रखे. कृष्ण ने कहा गोपियां प्रेम में थीं. और तुम खोपड़ी में थे. गोपियों तक को क्या मतलब ? गोपियां तक.... जैसे गोपियां बड़ी छोटी हों. नहीं उद्धव, वो तुमसे ज्यादा ऊंचाई पर हैं. क्योंकि वो प्रेम में हैं. ज्ञान का जब अंत होता है, तब प्रेम की शुरुवात होती है. सारे संतों ने कहा है - ज्ञान से यात्रा नहीं होती है. इस बात को ठीक से समझ लेना. ज्ञान साधन है, प्रेम सिद्धि है. ज्ञान से प्रभु जाना जाता है, प्रेम से प्रभु हुआ जाता है. गुरु अर्जुनदेव जी कहते हैं -' सांच कंहूँ सुन लेहु सबहु, जिन प्रेम कियो तिन्ही प्रभु पायो.' इसलिए असली बात प्रेम है. ज्ञान तो प्राइमरी स्कूल की बात है. प्रेम युनिवर्सिटी है, प्रेम phd है. इसलिए मैंने कभी लिखा था -
" मेरी समाधि पर लिखना वह सो रहा यहाँ, जो जाग गया.
जिसने इतना था प्रेम किया, हरि आकर स्वयं सराह गया.
जाते-जाते कह गया वचन, है नहीं प्रेम से बड़ा भजन.
अथ प्रेमं शरणं गच्छामि, भज ओशो शरणं गच्छामि.