सिद्धार्थ उपनिषद Page 75
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हर धर्म का सार बांसुरी है. ऐसा नहीं सनातन धर्म; हिंदू धर्म ही नहीं, इस्लाम का भी राज वो बांसुरी है. नाम बदल जाता है. मोहम्मद साहब उसको आमीन कहते हैं. नानकदेव जी उसको एक ओंकार सतनाम कहतें हैं. कबीर साहब उसको नाम कहते हैं, शब्द कहते हैं, राम कहते हैं. उपनिषद उद्गीत कहते हैं, प्रणव कहते हैं. सूफी उसे सदाए आसमानी, बांगें आसमानी कहते हैं. सूरदास उसको श्याम कहते हैं. ' मुरली धुन गाजा ' मुरली की एक धुन बज रही है. और ' कोटि कृष्ण तहं लाजा.' करोडों कृष्ण शरमा जायेंगे उस बांसुरी को सुनकर. देख लो सूरदास के बारे में बड़ा भ्रम है, कि सूरदास जी केवल वृन्दावन के कृष्ण के गीत गाते थे.
वल्लभाचार्य से मिलने के पहले वे सगुन कृष्ण के गीत गाते थे. जब अपने गुरु वल्लभाचार्य से मिले, उसके बाद वे निर्गुण कृष्ण के गीत गाने लगे. तो निश्चित वह जो बांसुरी है, वह तुम्हारी आत्मा का संगीत है.
महर्षि अरविन्द कहते हैं - कि वो संगीत ऐसा है कि उस संगीत में आलोक है.मानो कि संगीत आलोकित हो गया है. अथवा आलोक के हांथों में बांसुरी आ गई है. इतना सुन्दर भीतर आलोक आत्मा का फैला हुआ है. जीसस उसको शब्द, लोगोस कहते हैं. गौतम बुद्ध कहते हैं कि ' हजार शब्दों को जानने की जगह तुम उस एक शब्द को जान लो, जिसको जानने के बाद कुछ बाकी नहीं रहता है.