सिद्धार्थ उपनिषद Page 74
सिद्धार्थ उपनिषद Page 74
(270)
उद्धव कृष्ण के मित्र थे. उन्होंने कहा कि आप बीच-बीच में गोपियों की बहुत याद करते हैं. ये क्या गोपियां ? क्या खुरापात थी ? कृष्ण ने कहा वे मेरे प्रेम में हैं. उद्धव ने कहा ये प्रेम-वेम क्या बात है? धर्म में तो सिर्फ ज्ञान है. ये प्रेम-प्रेम की बात कहाँ से आ गई. उन्होंने कहा हां तुम ठीक कहते हो, गोपियों को भी जा के समझा दो. उद्धव ने कहा अभी गया और अभी आया समझाकर. पहुँच गए; कहा कि सुनो कृष्ण ने मुझे भेजा है,तुम लोगो को समझाने. गोपियां बड़ी खुश हुई, उनके प्रेमी के पास से कोई आया है. खूब स्वागत सत्कार किया.
उद्धव ने गीता का ज्ञान देना शुरू कर दिया, गोपियों ने ध्यान से सुना. उन्होंने कहा अच्छा ! आपको आपके मित्र ने बस इतना ही बताया. उद्धव ने कहा इतना कम है क्या ? गोपियों ने कहा उन्होंने बांसुरी नहीं सुनाई ! उद्धव बोले बांसुरी सुनने से क्या मतलब है ? गोपियों ने कहा वो जो बांसुरी बाहर बजाते हैं हम लोग उसकी बात नहीं कर रहे हैं. वो जो भीतर बजती है. जो आत्मा के भीतर भी बज रही है, वो सुनाया कि नहीं सुनाया. ओंकार की बांसुरी सुनाया की नही सुनाया.
उद्धव ने कहा ये तो पहली बार तुम लोगों से सुन रहा हूँ. वे बोलीं- तब तो बाल(गेंहू) उन्होंने हमको दे दिया, और घास-फूंस आपको दे दिया. उद्धव तो बड़े नाराज हुए. आये और कृष्ण से कहा वो पगली हैं, वो समझने वाली नहीं हैं. कृष्ण ने कहा उन्होंने कहा क्या ? उन्होंने कहा भीतर कोई बांसुरी बज रही है, जिसे वे सुनती रहती हैं. कृष्ण हँसने लगे बोले उद्धव वो तो बात ठीक ही कह रहीं थी. तुमने अभी तक सुना नहीं !!! तब कृष्ण ने उनको वो बांसुरी सुनवाई. वो ओंकार की बांसुरी सुनाई.