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    सिद्धार्थ उपनिषद Page 72



    सिद्धार्थ उपनिषद Page 72


    (267)


    अधिकतर सूफी non-veg होते हैं. इसलिए सूफी आत्मज्ञान को तो पा सकते हैं, परमपद को नहीं पा सकते. इसलिए किसी सूफी संत ने परमपद पाया हो यह बड़ा मुश्किल मामला है.
    तुमको यह जानकार आश्चर्य होगा कि स्वयं मोहम्मद साहब non-veg नहीं खाते थे. लेकिन अधिकतर सूफी  non-veg खाते हैं, ये बात भी ठीक है. और तुमको ये भी जानकर आश्चर्य होगा कि अधिकतर सूफी घट (अंतराकाश) की ही साधना करते हैं.

    'लोग दयरो हरम के मोहताज हैं, कुछ सयाने घट में उलझे क्या करें.'
    अधिकतर लोग तो मंदिर और मस्जिद, बस पंडित की दौड़ मंदिर तक, मियां की दौड़ मस्जिद तक. लेकिन कुछ सयाने लोग.. प्रज्ञावान लोग हैं, साधक वर्ग के लोग हैं. वो भी घट में उलझ गए - नाद में, नूर में, अमृत में, चैतन्य में, आनंद में,घट के भीतर जो निराकार है उसमें उलझ गए. 

    " लोग दयरो हरम के मोहताज हैं, कुछ सयाने घट में उलझे क्या करें.'
       मेरे मुर्शिद ने कहा 'सिद्धार्थ'सुन, आसमां खुद है खुदा क्या करें."

    (268)


    इस आकाश में परमात्मा..ओशो एक गजब की बात कहते हैं - 'जिसने आकाश में जीवंतता को देखा, जिसने आकाश में चैतन्यता को देखा. उसी ने परमात्मा को पहचाना, शेष कोई परमात्मा को नहीं जानता .
    घट में तुमने परमात्मा का दीदार कर लिया , तो आत्मा का दीदार घट में होता है. परमात्मा का दीदार घट में नहीं होता है. रवीन्द्रनाथ ने कहा था -,
    'Chirodin tomar akash
    Tomar batash,
    Amar prane
    Bajae bãsh'
    तो सूफियों को आकाश में परमात्मा नजर आता ही नहीं. जो non-veg खाते हैं उनसे परमात्मा पर्दा कर लेता है. अगर तुमने non-veg खाया तो परमात्मा का एक पर्दा डल गया. फिर भी इतना माफ कर देता है घट तक.  घट में देख सकते हो.  बाहर (बहिराकाश में) नहीं देख सकते हो.  तुम्हारी आँखों पर पर्दा डाल दिया जाता है.
     लेकिन ओशोधारा में आ गए हो तो हम non-veg बंद करा देतें हैं, करुणा से.  ताकि तुम घट के अंदर नहीं,  घट के बाहर भी उसका दीदार कर सको.


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