सिद्धार्थ उपनिषद Page 71
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' न गन्ता, न आगन्ता ' कृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं - कि आत्मा कहीं आती-जाती नहीं है.
लेकिन कौन आता-जाता है ? स्पिरीट आती-जाती है. जीवात्मा आती-जाती है. जीवात्मा शरीर से अलग होकर ईथर तत्व लेकर यहाँ से चलती है. कहीं जाती नहीं; अपने घर जाती है. ये सराय है. जैसे तुम घर से यहाँ आये हो, और फिर घर चले जाओगे. उसी तरह से visitor की तरह यहाँ पर हम आते हैं. चालीस साल, साठ साल, सौ साल इस सराय में रहते है. फिर चले जाते हैं.
संत कहते हैं यह हमारा मायका है. असली तो ससुराल हमारी जगह है. बुल्लेशाह कहते हैं - 'ऐथे ओथे दोई सराय ' ये तो सराय है ही, जहाँ (स्पिरीट वर्ल्ड) से हम आये हैं वो भी सराय है, उसे भी एक दिन छोड़कर विष्णुलोक में हमें जाना है. जहाँ संत रहते हैं. और मैं तो कहता हूँ - वो (विष्णुलोक) भी सराय है. क्योंकि अंत में आत्मा, परमात्मा में विलीन हो जाती है. माना कि लाखों साल लगते हैं. माना, लेकिन लाखों साल लगे कि हजार साल लगें कि चालीस साल, इससे क्या फर्क पड़ता है. है तो सराय ही.अंत में कोई बूँद नदी के रूप में रहे, कि तालाब के रूप में रहे, कि कुंए के, अंत में तो सागर ही है घर उसका.
सागर से निकलती है, सागर को जाती है.ऐसे ही हम सब सराय में हैं. असली तो हमारा घर समुन्दर, परमात्मा है.
वहीँ हमको जाना है.तब तक यहाँ से वहाँ, वहाँ से यहाँ आवागमन चल रहा है. शिवलोक (स्पिरीट वर्ल्ड)से भूलोक, भूलोक से शिवलोक. बस यही आना-जाना है. कल मैंने समझाया था कि मदरक्राफ्ट हमारा वहाँ रहता है.उससे हम कुछ अंश लेकर, ५० प्रतिशत करीब एनर्जी लेकर धरती पर आते हैं, कैपस्यूल रूप में. फिर यहाँ से मृत्यु के बाद कैपस्यूल जाकर फिट हो जाता है. ऐसे ही चलता रहता है.