सिद्धार्थ उपनिषद Page 61
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परमपद नित्य प्रेम में जीना है. 2-3 साल पहले शैलेन्द्र (छोटे गुरु) जी ने एक दिन कहा कि - " स्वामी जी अब जीने को मन करता है. मैं चौंका कि शैलेन्द्र जी को मृत्यु से कभी भय नहीं हुआ. तुम सब जानते हो भेडाघाट में जहाँ लोग आत्महत्या करने जाते हैं, वे नित्य कूद कर वहां स्नान किया करते थे. मृत्यु-जीवन का उनमें कभी मोह भी मैंने नहीं देखा. उनसे ऐसी बात सुनकर मैं चौंका ! मैंने कहा- आप ऐसी बात क्यूँ कर रहे हो. उन्होंने एक अदभुत् बात कही - ' कहा कि जो quality of life आपने हमें बताया है, ये quality of life किसी भी संत को अतीत में नसीब नहीं था. और इस quality को एक साल भी हम जी लें, तो शायद भविष्य में अनंत जन्मों में वह quality मिले न मिले, इसलिए 2-3...,8-10... साल, जितना भी इस quality में जीने को मिल जाए. अभी इसमें जी लें.
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धर्म के दो आयाम हैं - आध्यात्म और संस्कृति. आध्यात्म का संबंध भीतर से है, आत्मा से है, परमात्मा से है. संस्कृति का संबंध बाहर से है, जीवन से है, हमारी जीवन शैली से है.
दोनों से मिलकर धर्म का निर्माण होता है. जैसे हिंदू धर्म है, उसमें जो साधनाएं हैं, जो योग (कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, ध्यान योग, हठ योग, सांख्य योग, सहज योग आदि ) हैं, इनका संबंध भीतर से है. पर संस्कृति हमारी जीवन शैली है. जैसे हिंदू की जीवन शैली है, मुस्लिम की जीवन शैली है - रोजा, नमाज, हज, जकात, तौहीद, ये इस्लाम धर्म के पांच स्तंभ हैं. वे इन्हें पांच अरकान कहते हैं. जिसमें तौहीद अर्थात् अद्वैत भाव, यह अध्यात्म का हिस्सा है. बाकी चार रोजा, नमाज, हज, जकात संस्कृति का हिस्सा हैं. दोनों चीजें जरुरी हैं.
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संस्कृति कवच की तरह है. संस्कृति धर्म की रक्षक है. हमारे यहाँ पूजा है, पाठ है, मूर्ति पूजा है, रामायण, महाभारत की कथाएं है, ये संस्कृति का हिस्सा हैं. इनकी भी भूमिका है. एक हजार साल तक देश गुलाम रहा. लेकिन फिर भी हिंदू धर्म जिन्दा रहा. इसमें संस्कृति (पूजा, पाठ, रामायण, महाभारत आदि ) की बड़ी भूमिका रही. हमारे लोग जहाँ गए - मोरीशस, सुडिनाम आदि. वहां अपनी संस्कृति ले गए, और धर्म को अक्षुण्ण रखा.