सिद्धार्थ उपनिषद Page 60
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सत्संग का संबंध निष्कामता से है, नैतिकता से नहीं. सत्य से है, सदाचार से नहीं. अनुभव से है, आख्यान से नहीं. ओंकार से है, संस्कार से नहीं. विवेक से है, व्याख्यान से नहीं. सार से है, असार से नहीं. सत् से है, असत् से नहीं. ज्योति से है, तमस से नहीं. अमृत से है, मृत्यु से नहीं. मोक्ष से है, मोह से नहीं. राम से है, काम से नहीं. समाधि से है, सदाचार से नहीं. मंगल से है, जंगल से नहीं. शिव से है, शिला से नहीं. कर्म से है, कर्मकांड से नहीं. वर्तमान से है, भूत या भविष्य से नहीं. कर्मण्य से है, फल से नहीं.
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सुमिरन में जो जीता है, संत है. समाधि में जो जीता है, योगी है. ध्यान में जो जीता है, बुद्ध है. मन का मीत (मनेर मानुष) पाने वाला बाउल है. जिक्र में रहने वाला सूफी है. आत्मस्मरण में रहने वाला आत्मज्ञानी है. ब्रह्मस्मरण में रहने वाला ब्रह्मज्ञानी है.
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ओशो कहते हैं -" कि विज्ञान बहुत आगे बढ़ गया है. और वर्तमान वैज्ञानिकों को एक पलड़े पर रखा जाए और अतीत के सारे वैज्ञानिकों को दुसरे पलड़े पर, तो वर्तमान वैज्ञानिकों का पलड़ा भारी हो जायेगा. विज्ञान इतना विकसित हुआ है. और फिर ओशो एक चुनौती पेश करते हैं, कि मैं चाहता हूँ कि अध्यात्म भी उस मुकाम पर पहुंचे, कि वर्तमान के संतों को एक पलड़े पर रख दिया जाए और अतीत के सारे संतों को दूसरे पलड़े पर रख दिया जाए, तो वर्तमान के संतों का पलड़ा भारी हो जाना चाहिए.
मैंने जब पहली बार इस चुनौती को पढ़ा तो मुझे लगा कि, ओशो भी क्या मजाक की बात करते हैं. कभी ऐसा हो सकता है कि एक पलड़े पर कृष्ण हों, राम हों, बुद्ध हों, महावीर हों, कबीर, मीरा, सहजो, दया, दादू, दरियादास आदि हों और दूसरी तरफ आज के संतों को बिठा दिया जाए, तो आज के संतों का पलड़ा भारी हो जायेगा.
ये तो बिलकुल अकल्पनीय बात लगती है. लेकिन धीरे-धीरे मैंने देखा की यह उनका (ओशो का) सपना है. यह केवल चुनौती नहीं है, उनका (ओशो का) अपना सपना है.