सिद्धार्थ उपनिषद Page 62
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कभी-कभी आग जलती है - जैसे बोरसी होती है, उसमें आग भीतर रहती है. ऐसा कुछ आध्यात्म है. आध्यात्म तो जलती हुई आग है, लेकिन जो राख है वह संस्कृति है, उसमें आग भीतर रहती है. ऐसा कुछ आध्यात्म है. आध्यात्म तो जलती हुई आग है, लेकिन जो राख है वह संस्कृति है. और वह भी महत्वपूर्ण है. राख उस आग के ऊपर न रहे, तो आग बहुत देर नहीं जल पायेगी. वो राख उस आग की रक्षा करती है. दोनों का महत्व है.
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जैसे फल है - ऊपर छिलका है, भीतर गूदा है. वह छिलका बहुत महतवपूर्ण है. छिलका रहे तो भीतर गूदा खराब नहीं होगा. १०-२० दिन भी रख दो. छिलका जहाँ ह्तातो वह आधा दिन भी नहीं चलने वाला है.
संस्कृति छिलके की तरह है. छिलके को तुम पोषण के लिए नहीं खा सकते. पोषण तो आध्यात्म से होगा. लेकिन छिलका जरूरी है.
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पूंछते हो क्या विधि-विधान आध्यात्मिक यात्रा में जरूरी हैं. निश्चित जरूरी हैं. संस्कृति की जरुरत है. संस्कृति बाड़े की तरह है. तुम कहोगे खेत में फसल उगाना है, तो क्या बाड़े की जरूरत है ? बाड़े की तो बहुत जरुरत है, नहीं तो भैस आयेंगी चर जायेगी. तुम् कहोगे बाड़े का क्या करना ? जो करना है, फसल से लेना-देना है. फसल उपजाना है. बाड़े का क्या काम है ? बाड़े का काम है. बाड़ा न हो तो फसल सुरक्षित नहीं रहेगी.