सिद्धार्थ उपनिषद Page 56
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समाधि साधना का चौथा सोपान है. समाधि का अर्थ है अंतराकाश में विश्राम, जिसके लिए राजस्थान के संत दरिया कहते हैं- ' गिरह हमारी शून्य में, अनहद में विश्राम.' समाधि के द्वारा हम भय से मुक्ति पा सकते हैं. समाधि की उपलब्धि अमृत है, और मंजिल है सुरति.
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सुरति साधना का पांचवां सोपान है. सुरति का अर्थ है परमात्मा के साथ संबंध स्थापित कर, उसका अंश होने की प्रतीत कर उसकी याद में जीना. सुरति के द्वारा हम द्वैत से मुक्त हो सकते हैं. सुरति की उपलब्धि है अद्वैत और मंजिल है सुमिरन.
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सुमिरन साधना का छठा सोपान है. सुमिरन का अर्थ है सुरति के साथ प्रभु से प्रेम. सुमिरन के लिए आवश्यक है गुरु का संग, नाद श्रवण, अहोभाव, सहजता, गहरी सांस, आत्मस्मरण, नाद के स्रोत का ज्ञान, मन्त्र (auto suggestion) और सांसारिक उत्तरदायित्व. सुमिरन के द्वारा हम उदासी अर्थात् बोरियत से मुक्त हो सकते हैं, जो आधुनिक मनुष्य की सबसे बड़ी समस्या है. सुमिरन की उपलब्धि है आनंद और मंजिल है प्रेम.