सिद्धार्थ उपनिषद Page 54
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अहंकार क्या है ? नाम और रूप से तादात्म्य अहंकार है. हमारा वास्तविक स्वरूप नाम और रूप से परे है, अनाम है, निराकार है. ध्यान के द्वारा ही हम अपने वास्तविक स्वरुप कों जान सकते हैं. अतः ध्यान अहंकार से मुक्त होने का श्रेष्ठतम उपाय है.
(207)
भय क्या है ? हानि होने की संभावना का नाम भय है. सबसे बड़ा भय मृत्यु का है, क्योंकि मृत्यु में सबसे बड़ी हानि होती है- जीवन की हानि. समाधि में अपने अमृत-स्वरूप को जानकार ही भय से मुक्त हुआ जा सकता है.
(208)
प्रेम क्या है ? अहोभाव के साथ सहभागिता का मजा लेना प्रेम है.
(209)
प्रेम के मंदिर की नींव है अहोभाव. इसके चार स्तंभ या चार दीवारें हैं- ध्यान, दान, सम्मान और मुस्कान. इस मंदिर की छत या कलश है उमंग. अहोभाव का अर्थ है कृतज्ञता, धन्यवाद भाव, अशिकायत भाव. ध्यान का अर्थ है ध्यान देना, ख्याल रखना, स्मरण रखना, याद करना, मिस करना आदि. दान का अर्थ है देने का भाव, भेंट देना, उपहार देना. सम्मान का अर्थ है स्वतंत्रता देना, आदर देना, सदभाव. मुस्कान का अर्थ है आगमन या उपस्थिति पर प्रफुल्लित होना, प्रसन्न होना. उमंग का अर्थ है उत्साहित होना, उल्लसित होना.
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परमात्मा हमें प्रेम करता है. वह हमारा ख्याल रखता है. हवा, पानी, भोजन, जीवन, देखने को आंख, सुनने को कान, काम करने के लिए हाथ, प्रेम करने के लिए महबूब, मार्ग दिखाने के लिए सद्गुरु- उसने क्या नहीं दिया ?