सिद्धार्थ उपनिषद Page 53
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सुरति क्या है ? सांसों के साथ आत्मा अथवा परमात्मा के प्रति होश को सुरति कहते हैं. सूफी इसे फ़िक्र कहते हैं. इसमें सहज ही निर्विचार अवस्था बनी रहती है. सुरति होश से ज्यादा प्रभावशाली है.
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सुमिरन क्या है ? जब सुरति में मन्त्र जोड़ दिया जाता है, तो उसे सुमिरन कहते हैं. सूफी इसे जिक्र कहते हैं. यह सर्वाधिक प्रभावशाली है. प्रभाव की दृष्टि से यदि सुमिरन कों 100 प्रतिशत अंक दिया जा सकता है, तो सुरति कों 50 प्रतिशत और होश कों 25 प्रतिशत से ज्यादा नहीं दिया जा सकता.(204)
ध्यान, साक्षी अथवा समाधि में केवल होश का महत्व है, जबकि परमात्मा की भक्ति में सुरति एवं सुमिरन का विशेष महत्व है. ओशो के लगभग 80 प्रतिशत प्रवचन ध्यान, साक्षी एवं समाधि से सम्बंधित हैं, जिनमें उन्होंने होश की बात की है. केवल 20 प्रतिशत प्रवचन संत वाणी पर हैं, जिनमें उन्होंने सुरति एवं सुमिरन की बात की है. इसे एक भ्रान्ति पैदा हो गई है कि ओशो होश के पक्ष में हैं, सुमिरन या मन्त्र के पक्ष में नहीं हैं. जबकि सत्य यह है कि सुमिरन साधना का शिखर है, और यह बिना मन्त्र के नहीं हो सकता.
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सत् का उत्कर्ष अमृत है, जिसे हम ओशोधारा के चौथे तल के कार्यक्रम 'अमृत-समाधि ' में जानते हैं. सत् की मंजिल अद्वैत है, जिसे हम ओशोधरा के 11 वें तल के कार्यक्रम 'अद्वैत-समाधि ' में जानते हैं. चित् का उत्कर्ष चैतन्य है, आत्मज्ञान है, जिसे हम ओशोधारा के 7 वें तल के कार्यक्रम 'चैतन्य-समाधि ' में जानते हैं. चैतन्य की मंजिल कैवल्य है, जिसे हम ओशोधारा के 12 वें तल के कार्यक्रम 'कैवल्य-समाधि ' में जानते हैं. आनंद का उत्कर्ष आत्मानंद है, जिसे हम ओशोधारा के 9 वें तल के कार्यक्रम 'आनंद-समाधि ' में जानते हैं. आनंद की मंजिल निर्वाण है, जिसे हम ओशोधारा के 13 वें तल के कार्यक्रम 'निर्वाण-समाधि ' में जानते हैं. प्रेम का उत्कर्ष उत्सव है, जिसे हम ओशोधारा के 26 वें तल के कार्यक्रम 'गोविन्द-पद ' में जानते हैं. प्रेम की कोई मंजिल नहीं... चरैवेति...चरैवेति...चरैवेति... .