सिद्धार्थ उपनिषद Page 52
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ब्रह्म पद की साधना में प्रभु का स्वरूप ब्रह्म है, जो सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् है. यह प्रभु का गुण है, अभिव्यक्ति है. सत्यम् का अर्थ है प्रामाणिक, निर्भय, निरबैर, निरंजन, धर्म का नियंता, परम नियम का नियंता, हुकमी, न्याय कर्ता, धर्म का संस्थापक. शिवम् का अर्थ है मंगलमय, हितकारी, करुणामय, कल्याणकारी. सुन्दरम् का अर्थ है सौंदर्यप्रिय, सुन्दर दृष्टि का नियामक. वह ब्रह्म अपनी सृष्टि कों धर्म, मंगल और सौंदर्य की दिशा में ले जाने के लिए संकल्पित है. ब्रह्मा के रूप में वह सत्यम् का, शिव के रूप में शिवम् का और विष्णु के रूप में वह सुन्दरम् का अधिष्ठाता है.
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गोविन्द्पद में प्रभु का स्वरुप उत्सव है. उत्सवमय गोविन्द के नित्य प्रेम में जीना, उसके महारास में सम्मिलित हो जाना गोविन्द्पद है.
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परमात्मा (आनंदमय अस्तित्व) के नित्य प्रेम में जीना परमपद है. ब्रह्म ( सौन्दर्यमय अस्तित्व) के नित्य प्रेम में जीना ब्रह्मपद है. गोविन्द (उत्सवमय अस्तित्व) के नित्य प्रेम में जीना गोविन्द्पद है.
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अमृत क्या है ? नाद, नूर ही अमृत है. आनंद क्या है ? तृप्त एवं अकारण प्रफुल्लता की स्थिति आनंद है. प्रेम क्या है ? अहोभाव के साथ किसी को कुछ देने का अथवा शेयर करने का भाव प्रेम है. उत्सव क्या है ? असीमित प्रेम (overflowing) उत्सव है. सामान्यतः उत्सव को आनंद से जोड़कर देखा जाता है. लेकिन उत्सव का संबंध मुख्यतः प्रेम से है.
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होश क्या है ? अपनी आत्मा अथवा परमात्मा के प्रति जागना होश है. सूफी इसे ख्याल कहते हैं.