सिद्धार्थ उपनिषद Page 51
सिद्धार्थ उपनिषद Page 51
(193)
कर्मबंध क्या है ? यह कार्मिक नियम का हिस्सा है. जगत का सारा खेल जिन नियमों से चलता है, उसे कार्मिक नियम कहते हैं. उनमें से एक है न्याय का नियम अथवा कर्मबंध. इसके अनुसार हम जैसा कर्म करते हैं, अस्तित्व हमें वैसा ही फल देता है. हमारे कर्म ही हमारे आगे के जीवन का नियामन करते हैं, यही कर्मबंध है.
(194)
ओशोधारा समाधि/ सुमिरन कार्यक्रमों में अंतिम चार कार्यक्रम (24,25,26,27) परमपद, ब्रह्मपद, गोविन्द्पद और चरैवेती है. परमपद परमात्मा केंद्रित है. ब्रह्मपद ब्रह्म केंद्रित है. गोविन्द्पद गोविन्द केंद्रित है. चरैवेती गोविन्द पद का ही विस्तार है. परमात्मा, ब्रह्म और गोविन्द अस्तित्व के ही तीन रूप हैं. परमात्मा अर्थात् आनंदमय अस्तित्व. ब्रह्म अर्थात् सौन्दर्यमय अस्तित्व. गोविन्द अर्थात् उत्सवमय अस्तित्व. आध्यात्मिक दृष्टि से गोविद्पद उच्चतम शिखर है. यह अस्तित्व के महारास में सम्मिलित होने का निमंत्रण है.
(195)
प्रेम ब्रह्म ओशोधारा का 23 वां कार्यक्रम है. यह प्रेम ब्रह्म केंद्रित है. प्रेम ब्रह्म अर्थात् अस्तित्वगत प्रेम (). प्रेम ब्रह्म और गोविन्द में अंतर है. प्रेम ब्रह्म में प्रेम अस्तित्व का स्वाभाव है, प्रकृति है. गोविन्द में प्रेम उसका गुण है, अभिव्यक्ति है. प्रेम ब्रह्म में प्रभु थिर है. गोविन्द में प्रभु नृत्य कर रहा है, नटराज है, रास रचा रहा है, लीला कर रहा है, भक्तों कों रिझा रहा है.
(196)
परमपद की साधना में प्रभु का स्वरुप सत् है, चित् है, आनंद है. सत् अर्थात् शाश्वत, अपरिवर्तनशील, अकालमूरत. चित् अर्थात् चैतन्य, जीवंत, संवेदनशील. आनंद अर्थात अकारण प्रफुल्लित. सत्-चित्-आनंद प्रभु का स्वभाव है, प्रकृति है, स्थिति है.