सिद्धार्थ उपनिषद Page 49
सिद्धार्थ उपनिषद Page 49
(183)
हमारी चेतना प्रेम का साधन है, माध्यम है. यह संसार से प्रेम करे, तो लौकिक प्रेम है. स्वयं की आत्मा से प्रेम करे, तो ध्यान है, समाधि है. परमात्मा से प्रेम करे, तो सुमिरन है.
(184)
सबसे बड़ा मोह अपने शरीर के प्रति होता है. यह प्रज्ञा जग जाए कि एक दिन शरीर की यह गाड़ी छोड़नी पड़ेगी, तो यह मोह विदा होना शुरू हो जाता है. मोह से मुक्ति का यह सुन्दर उपाय है.
(185)
अशांति से मुक्त होने का महामंत्र है ' मैं मूलतः ब्रह्म हूँ.' इस एहसास से भरते ही हम अशांति से मुक्त हो जाते हैं.
(186)
स्वयं के होने का मजा लेना ध्यान है. दूसरे के होने का मजा लेना प्रेम है. स्वयं के मिटने का मजा लेना समाधि है.
(187)
ध्यान शांति में ले जाता है. प्रेम आनंद में ले जाता है. समाधि विश्राम में ले जाती है.
(188)
निद्रा शरीर का विश्राम है. सुमिरन मन का विश्राम है. समाधि आत्मा का विश्राम है.