सिद्धार्थ उपनिषद Page 50
सिद्धार्थ उपनिषद Page 50
(189)
होने का मजा ' यहीं ' (here) में लाता है. करने का मजा ' अभी ' (now) में लाता है. आत्मस्मरण के साथ कर्म अर्थात् साक्षी अभी ओर यहीं में लाता है.
(190)
अतीत और भविष्य से मुक्ति का महामंत्र है ' मैं आत्मा हूँ.' फिर कैसा भूत और भविष्य ? कैसा शोक और कैसी कामना ?
(191)
कृष्ण कहते हैं- ' या निशा सर्वभूतानाम् ता निशा जाग्रति संयमी.' अर्थात् सभी प्राणी रात्रि के जिस प्रहर (चौथा प्रहर, अंतिम प्रहर, ब्रह्म मुहूर्त, प्रातः 3 से 6 बजे ) में सभी जीव सोते हैं, उस समय साधक जागता है. चरणदास भी कहते है कि प्रथम प्रहर में रोगी जागता है, दुसरे प्रहर में भोगी जागता है, तीसरे प्रहर में चोर जागता है और चौथे प्रहर में योगी जागता है. रात के प्रथम तीन प्रहर में शिकार के लिए कई प्राणी जागते हैं. लेकिन रात्रि के अंतिम प्रहार में सभी जीव सोना पसंद करते है. वही समय साधना के लिए सर्वाधिक अनुकूल है.
(192)
बंध क्या है ? अतृप्ति बंध है, क्योंकि अतृप्ति ही पुनर्जन्म का कारण है. अतृप्ति के कारण काम है, इसलिए काम बंध है. अतृप्ति के कारण क्रोध है, इसलिए क्रोध बंध है. अतृप्ति के कारण लोभ है, इसलिए लोभ बंध है. अतृप्ति के कारण मोह है, इसलिए मोह बंध है. अतृप्ति के कारण ईर्ष्या है, इसलिए ईर्ष्या बंध है. अतृप्ति के कारण द्वेष है, इसलिए द्वेष बंध है.