सिद्धार्थ उपनिषद Page 42
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'धन्यवाद ', 'शुक्रिया ' या 'थैंक्यू ' प्यारे शब्द हैं. किसी ने हमारे लिए कुछ किया, तो हमसे धन्यवाद सुनकर उसे अच्छा लगता है और वह आगे भी कुछ करना पसंद करता है. हमारे देश में धन्यवाद का इतना प्रचलन नहीं है. यहाँ शिकायत की संस्कृति है. हम 'धन्यवाद ' को अपनाकर अपने रिश्तों में सुवास ला सकते हैं.
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धन्यवाद की तरह 'क्षमा करें ' या 'सॉरी ' रिश्तों को टूटने से बचा सकता है. हमने गलती की या नहीं, यह मुख्य बात नहीं है. दूसरे को बुरा लगा यह मुख्य बात है. ऐसे समय हमारी ओर से एक छोटा सा 'सॉरी ' संबंधों में संभावित दरार होने से हमें बचा लेता है.
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क्या आप अपने जीवन के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हैं? क्या आप पहल (iniciative) करते हैं? विशेषकर ब्रेकडाउन को ब्रेकथ्रू में बदलने के लिए? क्या आप में प्रशंसा बोध है? क्या आप परोपकार में रूचि लेते हैं? क्या आप प्रेमपूर्ण है और सबसे मधुर व्यवहार करते हैं? क्या लीक से हटकर आप कुछ और सोच सकते हैं? क्या आत्मविश्वास के साथ आप कुछ नया कर सकते हैं? क्या आपकी दृष्टी सम्यक् है अर्थात् दूसरों के दोष पर चर्चा करने की जगह आप विचार करते हैं कि आसन्न परिस्थितियों में हम क्या कर सकते हैं? समस्या आने पर क्या आप चिंता से घिर जाते हैं या समाधान के लिए प्रयास करते हैं? क्या आप अपने वादे निभाते हैं? क्या सत्य और न्याय के लिए आप संघर्ष करते हैं? क्या कार्य को आप अकेले करते हैं या टीम बनाते है? क्या आप अपनी सफलता का श्रेय स्वयं लेते हैं या ओरों को भी देते हैं? क्या अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थों को पाने की दिशा में आप प्रयासरत हैं? यदि उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर आप 'हाँ ' में दे सकते हैं, तो आप पुरुषार्थी (proactive) अर्थात् असाधारण व्यक्ति माने जायेंगे, अन्यथा आप उस भीड़ के हिस्से हैं, जिसके पास अपनी कोई प्रज्ञा नहीं होती.