सिद्धार्थ उपनिषद Page 40
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रोष और क्रोध में बहुत अंतर है. किसी से कुछ मिलने में बाधा से जो ताप पैदा होता है, उसका नाम क्रोध है. इसके विपरीत हम किसी को कुछ देना चाहते हैं, लेकिन लेने वाले की ओर से बाधा के कारण जो ताप पैदा होता है, वह रोष है. क्रोध में हिंसा है, रोष में करुणा है. क्रोध में कंप है, रोष में अकंप है. क्रोध संसारी का लक्षण है, रोष संत का लक्षण है.
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प्रेम और मंगल में भेद है. अहोभाव + दाताभाव = प्रेम. अहोभाव + सदभाव = मगल है. मंगल सबके प्रति हो सकता है, किन्तु प्रेम कुछ विशेष लोगों के प्रति होता है. मंगल आम है, प्रेम खास है. अस्तित्व सबके प्रति मंगलमय है, लेकिन अपने भक्तों को प्रेम करता है. गुरु अर्जुनदेव जी कहते हैं - ' कंठि लगाई अपुने जन राखे अपुनी प्रीति पिआरा '.
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तथाता और तथाता भाव में अंतर है. तथाता का अर्थ है अकंप में जीना, अडोल में जीना. कृष्णमूर्ति जिसे चुनावरहित जागरूकता (choiceless awareness) कहते हैं. ओशो जिसे आत्मजागरण (subjective awareness) कहते हैं. तथाता भाव का अर्थ है निष्काम में जीना, अशिकायत में जीना, स्वीकार में जीना. तथाता आत्मस्थिति है, तथाता भाव मनस्थिति है. तथाता का सम्बन्ध निराकार से है, जबकि तथाता भाव का संबंध आकार से है.