सिद्धार्थ उपनिषद Page 32
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जीने के लिए उमंग जरूरी है. निम्नलिखित बातें उमंग लाती है -'आसन, व्यायाम, प्राणायाम (या गहरी साँस), चक्रमण (सैर), खेल-कूद, सूर्यदर्शन, चन्द्रदर्शन, पर्वत दर्शन, आकाश दर्शन, पंछी दर्शन, वृक्ष दर्शन, हरियाली दर्शन, पुष्प दर्शन, मत्स्य दर्शन, मालिश, स्नान, सुगंध, स्वच्छता, बाग, बागवानी, नदी(या जलाशय), जल क्रीडा, नौका विहार, राफटिंग, वन भ्रमण, नूतन कार्य, सृजनात्मक कार्य, काव्य सृजन, फिल्म, नाटक, परोपकार, प्रेम भाव, हास्य, गायन, नृत्य, उत्सव, धूप सेवन, अग्नि-सेवन, सत्संग, नाद श्रवण आदि. उमंग चक्रासन(दाहिना कंधा क्लोकवाइज और बांयाँ कंधा एंटी क्लोकवाइज घुमाना) तुरत उमंग में ले जाता है. ज्ञानमुद्रा उमंग में वृद्धि करती है. ह्रदय चक्र के पीछे दिव्य उमंग विन्दु है, जिसका ज्ञान ओशोधारा की 'ऊर्जा समाधि' में कराया जाता है. ओशोधारा के त्रिदिवसीय कार्यक्रम 'उमंग प्रज्ञा'में उमंगपूर्ण जीवन जीने की कला सिखाई जाती है.
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परमगुरु ओशो की सम्पूर्ण देशना के सार-सूत्र को अगर एक ही वाक्य में कहें तो वह है -'अभी और यहीं जीओ.' अभी का मतलब है न अतीत न भविष्य. अतीत और भविष्य दोनों समय के हिस्से हैं. वर्तमान समय का हिस्सा नहीं है. 'अभी' बहिराकाश है, वही परमात्मा है. 'यहीं' अंतरआकाश है, वही निराकार है, हमारी आत्मा है. आत्मा परमात्मा का एक छोर है और परमात्मा का आत्मा का विस्तार है. अभी और यहीं का मतलब हुआ आती सांस के साथ परमात्मा या बहिराकाश की याद और जाती सांस के साथ आत्मा या अपनी याद, अपने होने की याद.
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प्रेम सुरक्षा चाहता है, लेकिन सुरक्षा में ही वह मर जाता है. प्रेम पौधे की तरह है. उसे असुरक्षा की हवा और रोशनी चाहिए. बंद कमरे में पौधे को सुरक्षा तो मिलेगी, मगर वह जिन्दा नहीं बचेगा. ऐसे ही विवाह की सुरक्षा मिलते ही वह मर जाएगा. इसलिए प्रेम को बचाना है, तो उसे विवाह के सुरक्षा कवच से बचाना होगा. मैत्री काफी है. मैत्री की धूप और स्वतंत्रता की हवा में ही प्रेम का पौधा लहलहा सकता है