सिद्धार्थ उपनिषद Page 26
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संसार हुकम से चलता है, अध्यात्म हुकमी से चलता है. हुकम अर्थात माया, परम नियम. हुकमी अर्थात परमात्मा.हुकमी निराकार है. हुकम आकार है. सभी देव-देवियाँ हुकम के हिस्सें हैं, रूप के हिस्सें हैं. हुकमी अरूप है. यह बात और है कि हुकमी में हुकम समाहित है और हुकम में हुकमी छिपा है. कबीर साहब ठीक कहतें हैं -'खालिक खलक खलक महि खालिक.'
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सहज योग की साधना में नाम अर्थात नाद नाव की तरह है. मीरा कहती है -'सत कि नाव, केवटिया सदगुरु भवसागर तरी आयो.' अर्थात सतनाम (नाद) नाव की तरह है, सदगुरु केवट की तरह है, संसार भवसागर की तरह है. नानक कहते हैं -'नानक नाम जहाज है, चढे सो उतरे पार.' अर्थात नाम (नाद) के जहाज पर चढे बिना भवसागर पार नहीं किया जा सकता. लेकिन एक बात याद रखनी है कि नाद नाव ही है, केवट नहीं, जहाज का पायलट नहीं. केवल सदगुरु रुपी पायलट ही जानता है कि नाव को परमात्मा की दिशा में कैसे ले जाना है.
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गायनप्रज्ञा कार्यक्रम न केवल हमें गायन सिखाता है,बल्कि उत्सव में जीना भी सिखाता है. अध्यात्म की ऊचाइयों पर चढते-चढते कहीं हम संसार के प्रति उदासीन न हो जाएँ, जोरबा दि बुद्धा की ओशो की संकल्पना भूल न जाए, इसके लिए गायन प्रज्ञा बहुत महत्वपूर्ण है.
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साधना के दो मुख्य सोपान हैं -'घट की साधना और घटातीत की साधना, जिसके लिए कबीर साहब कहते हैं -'जल में कुंभ कुंभ में जल है, बाहर भीतर पानी.' घट के भीतर नाद, नूर, अमृत, ऊर्जा, उमंग, शक्ति, स्वाद, गंध, मंगल, खुमारी, चैतन्य, स्पर्श, आनंद, प्रेम, अद्वैत, कैवल्य, निर्वाण आदि तत्वों का उदघाटन आधी यात्रा है, कुंभ में जल का अनुभव है, जो अध्यात्म का पूर्वार्द्ध है. घटातीत साधना अर्थात बाहर के आकाश में परमात्मा का अनुभव जल में कुंभ का अनुभव है, जो साधना का उत्तरार्ध्द है.