सिद्धार्थ उपनिषद Page 18
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संसार बहती हुई नदी है, परिवर्तनशील है. परमात्मा ठहरा हुआ सागर है, शाश्वत है. साक्षी होकर दोनों का मजा लेना संतत्व है. जैसे सागर नदी के जल का स्रोत भी है, और गंतव्य भी, वैसे ही परमात्मा संसार का उदगम भी है, और गंतव्य भी. सारी सृष्टि परमात्मा से ही पैदा होती है, और अंत में उसी में लीन हो जाती है.
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संसार भी ज्ञेय है. परमात्मा भी ज्ञेय है. हमारा निराकार चैतन्य दोनों का ज्ञाता है. ज्ञाता और ज्ञेय का प्रेमपूर्ण मिलन ही भक्ति है.यह मिलन सुमिरन द्वारा ही संभव है.
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साक्षी का अर्थ है निराकार के तल पर जीना, आत्मा के तल पर जीना - subjective living. चाहे संसार हो या परमात्मा, दोनों के प्रति जागरण निराकार के तल पर ही संभव है. देह के तल पर, मन के तल पर, ह्रदय के तल पर जीना बेहोशी है. निराकार के तल पर, आत्मा के तल पर, subjectivity के तल पर जीना होश है,जागरण है, साक्षी है.
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यूरोप का भ्रमण करते समय कई बातें देखने और सीखने को मिलीं. ब्रिटेन, नीदरलैंड, बेल्जियम, लग्जमबर्ग, फ़्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, इटली, वैटिकन आदि देशों के सौंदर्य और व्यवस्था को देखकर मन मुग्ध हो गया. विशेषकर स्विट्जरलैंड का सौंदर्य एवं हरियाली तो अद्भुत है. आज वख्त आ गया है कि हम भारत को सुन्दर बनाने के लिए प्रयास करें. जितने भी राजपथ हैं, उनके दोनों किनारे सघन रूप से वृक्ष लगाकर हम एक सुन्दर शुरुआत कर सकते हैं.