सिद्धार्थ उपनिषद Page 17
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कुछ लोग अमरनाथ की यात्रा को पाखण्ड कहकर शिव भक्तों की आस्था पर प्रहार करते हैं. ऐसे लोगों को धर्म का कुछ भी पता नहीं. क्या वे भगवान शिव के बारे में थोडा भी ज्ञान रखते हैं ? क्या वे जानते हैं कि पाश्चात्य सम्मोहनविदों और माइकेल न्यूटन जैसे पूर्वजन्म शोधकों ने स्पिरिट वर्ल्ड के गवर्नर के रूप में भगवान शिव की सत्ता को स्वीकार किया है ? क्या वे जानते हैं कि मृत्यु के बाद क्या होता है ? क्या वे जानते हैं कि दो जन्मों के बीच में जीवात्मा कहाँ रहती है ? क्या वे जानते हैं कि जन्म के पूर्व और मृत्यु के बाद जीवात्मा कहाँ रहती है ? क्या वे जानते हैं कि महाजीवन की यह सारी व्यवस्था भगवान शिव के निर्देशन में संपन्न होती है ? क्या वे जानते हैं कि अमरनाथ हो या कैलाश, सोमनाथ हो या बद्रीनाथ जहाँ भी भक्त सच्चे मन से शिव को आमंत्रित करते है, वे वहाँ प्रकट हो जाते हैं ? मूर्ति हो या चित्र, मज़ार हो या मस्जिद, गिरजा हो या गुरुद्वारा, काशी हो या काबा, बोधगया हो या गिरनार, पावापुरी हो या पारसनाथ,अमृतसर हो या अजमेर शरीफ, शिरडी हो या सारनाथ, जेरूसलम हो या जगन्नाथपुरी, तिरुपति हो या हरिद्वार, अयोध्या हो या वृन्दावन, ये किसी सत्ता को याद करने के माध्यम भर हैं. लेकिन इबादत के किसी तरीके को पाखंड कहना उस व्यक्ति की अज्ञानता और मूढ़ता को ही दर्शाता है. हिम्मत है तो ऐसा स्वामी अग्निवेश हज यात्रा के बारे में कहकर देखें. प्रसिद्द सूफी फकीर शम्स तबरेज कहते हैं - ' हर कौम रस्तराहे, काबे व क़िबलागाहे.'
अर्थात हर कौम इबादत के अपने रास्ते पर ठीक है, चाहे कोई काबा की ओर मुखातिब होकर नमाज अदा करता है, अथवा किसी और दिशा में रुख कर इबादत करता है.