सिद्धार्थ उपनिषद Page 16
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सुफिज्म पर हमने काफी अनुसंधान किया है. इस क्रम में ख्वाजा मोइउद्दीन चिश्ती के दरगाह अजमेर शरीफ, बख्तियार काकी और निजामुद्दीन औलिया के दरगाह दिल्ली, शेख फरीद के दरगाह हांसी, बू अली शाह के दरगाह पानीपत,हजरत साबिर के दरगाह कलियर आदि की यात्राएं भी की और इन स्थानों पर उनकी उपस्थिति महसूस की. अधिकतर सूफी मानते हैं कि ये बुजुर्ग सदा अपनी मजारों पर उपलब्ध रहते हैं और जरूरतमंदों की मन्नतें और ख्वाइशें पूरी करते हैं. लेकिन यह ख्याल न तो सही है, न ही उचित. हमारा अन्वेषण कहता है कि संत और फकीर विष्णुलोक (मुक्तिलोक,अमरलोक,बैकुंठ,आनंदलोक आदि नामों से भी ज्ञात)में रहते हैं और भाव सहित याद करने पर अपनी मजारों,समाधियों अथवा अन्य स्थानों पर अपने चाहने वालों को मार्ग दिखलाते हैं.
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जीवन एक चक्रव्यूह है. परमात्मा के केंद्र तक जाने के लिए इच्छाओं के ६ द्वार तोड़ने पड़ते हैं - भौतिक इच्छाऐ जैसे रोटी, कपड़ा,और मकान;भोग, सुरक्षा, प्रेम, सम्बन्ध और यश. या तो इन्हें प्राप्त कर हम आप्तकाम हो जाए अथवा समझ के द्वारा इनकी व्यर्थता का बोध हो जाए. दोनों कठिन हैं. इसलिए हर युग में बहुत थोड़े से लोग परमात्मा में उत्सुक हो पाते हैं. राजगीर में शान्ति स्तूप परिसर में मैंने बुद्ध का एक वचन लिखा हुआ देखा - 'यह जानते हुए भी कि लोग मुझे सुनते नहीं, मैं प्रतिदिन इस पर्वत पर नियमित रूप से बोले चला जाता हूं.' यह पीड़ा केवल बुद्ध को ही नहीं, लगभग सभी ज्ञानियों की है, सभी संतों की है.