सिद्धार्थ उपनिषद Page 15
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जो बह रहा है, परिवर्तनशील है, वह संसार है, वर्तमान है. जो थिर है, अपरिवर्तनशील है,शाश्वत है, वह परमात्मा है. शाश्वत एवं वर्तमान दोनों को एक साथ देखना साक्षी है.
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परमात्मा की सृष्टि बहुत सुंदर है. गगनचुम्बी पर्वत, ऊंचे दरख्त , शांत झील, बहती नदी, खिलते फूल, उड़ते पंछी, नाचती तितलियां,गुनगुनाते भौरें यह परमात्मा का वर्तमान स्वरुप है. विराट आकाश उसका शाश्वत स्वरुप है. परमात्मा और संसार दोनों को एक साथ देखना सम्यक दृष्टी है.
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जब भी कोई परमगुरु विदा होता है, उसके शिष्य दो भागों में बंट जाते हैं - १.तत्ववादी २.मतवादी. तत्ववादी जीवित गुरु की महत्ता को स्वीकार करते हैं. मतवादी जीवित गुरु की महत्ता को नहीं मानते और परमगुरु के वचनों को ही अंतिम रूप से प्रामाणिक मानते हैं.उदाहरण के लिए जब गौतम बुद्ध विदा हुए, तो उनके शिष्य दो भागों में बंट गए - १. हीनयान, और २.महायान. हीनयान मतवादी हो गए. उन्होंने गौतम बुद्ध के अतिरिक्त किसी अन्य गुरु की सत्ता को नहीं माना. महायानी तत्ववादी हैं. वे जीवित सदगुरु के बिना धर्म को बेजान मानते हैं. सारा तिब्बत महायानी है. वहाँ आज भी दलाई लामा,लामा कर्मप्पा , रिंपोच आदि के रूप में बुद्ध की जीवंत परम्परा चल रही है. हजरत मुहम्मद साहब के जाने के बाद भी इस्लाम दो भागों में बंट गया - १. दीन-ए-इस्लाम, और २. दीन-ए-मुहम्मदी. दीन-ए-इस्लाम को मानने वाले पीर या गुरु कि सत्ता को नहीं मानते. वो हजरत मुहम्मद को अंतिम पेगम्बर मानते हैं और उनके वचनों से निर्देशित होते हैं.दीन-ए-मुहम्मदी में भरोसा करने वाले अपने कि सूफी कहते हैं और मानते हैं कि गुरु का सहारा लेकर कोई इलहाम (बुद्धत्व )को उपलब्ध हो सकता है.इसलिए आश्चर्य कि बात नहीं कि परमगुरु ओशो के विदा होने के बाद उनके शिष्य भी दो भागों में बंट गए- १. मतवादी, २. तत्ववादी. मतवादी मानते हैं कि ओशो आखिरी सदगुरु हैं और उनकी परंपरा में अन्य किसी गुरु की न तो जरुरत है, न ही गुरु कहलाने का अधिकार है. इस परम्परा में ओशोधारा एकमात्र तत्ववादी धारा है, जो जीवित गुरु के माध्यम से परमज्ञान और परमपद तक कि यात्रा में भरोसा करती है.