सिद्धार्थ उपनिषद Page 13
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धर्म के चार मूल तत्व हैं-साक्षी,ध्यान,समाधि एवं सुमिरन. पूजा,उपासना,देवी-देवता,इबादत,बलि,क़ुरबानी,रोजा,नमाज,ग्रंथों का अध्ययन,कथा,पुराण,कीर्तन पाठ,जप,तप,मंत्र-तंत्र-यन्त्र,अनुष्ठान,यज्ञ,ज्योतिष,हीलिंग,रोग-निवारण आदि परिधि की बातें हैं.लेकिन आश्चर्य होता है कि अधिकतर लोगों को धर्म के मूल तत्व का कोई अंदाजा तक नहीं.वे ऐसे गुरुओं से जुड़े हैं,जो स्वयं ही परिधि में उलझे हैं और लोगों को भी उलझा रहे हैं.धार्मिक चैनलों पर धर्म के नाम पर अंट-शंट कुछ भी परोसा जा रहा है.लोग पहले से ही दिग्भ्रमित हैं,ऊपर से ये तथाकथित धार्मिक चैनल आग में घी का काम कर रहे हैं.वे भी क्या करें.उनको अपने व्यापार से मतलब है.सरकार भी क्या करे.उसे भ्रष्टाचार से ही फुरसत नहीं.पत्रकार भी क्या करें.सब धान साढ़े बाईस पसेरी के अंदाज में वे सबको गाली दे रहे हैं.ऐसे में सदगुरु कि तलाश बहुत ही चुनौतीपूर्ण होती जा रही है.कबीर साहब कि बात आज और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई है--'भवंर जाल बगुजाल है,बूडे बहुत अचेत.
कह कबीर तिन बांचिहें ,जिनके ह्रदय विवेक.'
अर्थात एक साधक मछली की तरह है,जिसे फंसाने के लिए संसार का जाल तो पहले से ही मौजूद है,लेकिन उससे वह किसी तरह बचकर निकल भी जाए,तो बगुलों की कतार उसे निगलने के लिए तैयार खड़ी है.ऐसे में साधक का विवेक ही उसे पूरा गुरु तक पहुंचा सकता है.लेकिन पूरा गुरु की पहचान क्या है ? कबीर प्रमाण हैं.कबीर साहब कि कसौटी पर कसो,नकली और असली का भेद पता चल जायेगा.कहतें हैं कबीर साहब--
'गुरु गुरु में भेद है,गुरु गुरु में भाव.
सोई गुरु नित बन्दिये,जो सबद बतावै दाव.'