सिद्धार्थ उपनिषद Page 11
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ध्यान का उद्देश्य आत्मा से जुडना है.समाधी का उद्देश्य आत्मा में होना है.साक्षी का उद्देश्य आत्मा के तल पर जीना है.सुमिरन का उद्देश्य परमात्मा के प्रेम में आनंदित रहना है.ओशोधारा के सन्यासी को चारो घाटो का सम्यक उपयोग करना है.
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भक्ति आग कि तरह है.सुमिरन घी की तरह है.यदि तुम चाहते हो कि भक्ति कि आंच धीमी न पड़े,तो सांस-सांस में सुमिरन का घी डालते रहो .
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बहिर्जगत के प्रति जागना एकाग्रता है.अंतर्जगत के प्रति जागना द्रष्टा है.निराकार के प्रति जागना ध्यान है.ओंकार के प्रति जागना सुमिरन है.अंतराकाश के प्रति जागना समाधी है.
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क्या तुम उत्तरोत्तर आनंद की ओर बढ़ रहे हो ? यदि हां,तो तुम आध्यात्मिक रूप से विकसित हो रहे हो.
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ओशो की दृष्टि में संसार में भी फैलना है,ओर परमात्मा में भी.परमात्मा से भी प्रेम करना है और संसार से भी .लेकिन संसार के मोह में नहीं पड़ना है.मोह और प्रेम में क्या अंतर है ? मोह में अपेछा है.प्रेम निरपेछ है.मोह में सीमा है.प्रेम असीम है.मोह में काम है.प्रेम निष्काम है.मोहग्रस्त व्यक्ति अपने लिए जीता है.प्रेमपूर्ण व्यक्ति अपनों के लिए जीता है.
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आत्मस्मरण से हरिस्मरण आसान है.आत्मस्मरण में चेतना का प्रत्याहार जरूरी है.हरिस्मरण में स्वाभाविक रूप से बाहर जा रही चेतना को विराट से जोड़ देना है.इसलिए आत्मस्मरण,हरिस्मरण के साथ हो,तो साधना उत्कर्ष छू लेती है.