सिद्धार्थ उपनिषद Page 09
सिद्धार्थ उपनिषद Page 09
(47)
महाजीवन की यात्रा आकाशिक रिकॉर्ड
के अनुसार चलती है.ज्योतिष उस रिकॉर्ड को पढ़ने का विज्ञान है.संत के केवल एक जन्म का आकाशिक रिकॉर्ड होता है.वह महाजीवन से मुक्त परम जीवन में जीता है.वह भविष्य में होने वाले जन्मों के लिए पूरी तरह स्वतन्त्र है.
(48)
सुमिरन विधि है,प्रेम सिद्धि है.जिसे हम प्रेम करते हैं,वह याद आता रहता है.जिसे हम याद करते हैं,उससे प्रेम हो जाता है.भक्ति का विज्ञान इसी बात पर खड़ा है.प्रभु का निरंतर सुमिरन हमें प्रभु से प्रेम कि ओर ले जाता है.प्रेम कि आग में सुमिरन ईंधन का काम करता है.जिस दिन प्रेम पूरा हो जाता है,उस दिन सुमिरन करना नहीं पड़ता,प्रभु कि याद स्वाभाविक रूप से बनी रहती है.सुमिरन और भक्ति ईंधन और आग कि तरह हैं.
(49)
प्रेमानंद ही साध्य है.जगत से प्रेम के आनंद में सारा संसार पागल है.यह लौकिक प्रेमानंद है.कुछ लोग ईष्ट के प्रेम में पागल हैं.यह गौणी प्रेमानंद है.कुछ अति प्रतिभाशाली लोग गोविन्द से प्रेम का आनंद ले पाते हैं.यह परा प्रेमानंद है.यही परम जीवन का लक्ष्य है.
(50)
ज्ञान और भक्ति में क्या अंतर है ? ज्ञान आत्मा या परमात्मा का अनुभव है.भक्ति परमात्मा से प्रेम है.अनुभव के बिना प्रेम कैसे होगा ? ज्ञान के बिना भक्ति कैसे होगी ?
(51)
ज्ञान जल कि तरह है.भक्ति भाप की तरह है.ज्ञान को भक्ति में बदलने के लिए सुमिरन कि आग चाहिए.
(52)
ज्ञान की कोई दिशा नहीं होती.वह तो आकाश के अनुभव की तरह है.भक्ति की दिशा होती है.भक्ति नदी की तरह है,जो ज्ञान के सागर की ओर बहती चली जा रही है.ज्ञान unaddressed है,भक्ति addressed है.unaddressed प्रेम का अनुभव भी ज्ञान है.unaddressed ज्ञान का सुमिरन भक्ति है.