सिद्धार्थ उपनिषद Page 08
*****( साधना - सूत्र )*****
सिद्धार्थ उपनिषद Page 08
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कोई भी साधना बंद गली कि तरह कहीं-न-कहीं जाकर अटका देती है.नाम साधना एकमात्र साधना है,जो हमें प्रभु कि मंजिल तक ले जाती है.तंत्र हो या मंत्र,कर्मयोग हो या हठयोग,भक्तियोग हो या ज्ञानयोग,ध्यानयोग या सांख्ययोग सब अधूरी यात्रा के मार्ग हैं.नाम साधना का मार्ग सहज योग है.केवल यही पूर्ण मार्ग है.केवल सहजयोग का जानकार ही पूरा संत या पूरा गुरु हो सकता है.
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देह आत्मा का आवरण है.प्रकृति परमात्मा का आवरण है.दृष्टि निर्मल हो जाए,तो देह में ही आत्मा दिखाई देने लगती है.प्रकृति में ही परमात्मा दिखाई देने लगता है.
'कबिरा मन निर्मल भया,जैसे गंगा नीर.पीछे -पीछे हरि चले,कहत कबीर कबीर.'
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प्रेम सबसे बड़ी सिद्धि है.गोविन्द सबसे बड़ा देव है.गोविन्द का प्यारा ब्रम्हा,विष्णु,महेश और संतों का दुलारा होता है.भक्ति करनी हो,तो गोविन्द कि करो.यही सच्ची भक्ति है.
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हिमालय जाओगे,तो सिद्ध मिलेगे,सदगुरु नहीं.सिद्धी मिलेगी,संबोधि नहीं.शक्ति मिलेगी,शांति नहीं.सम्मान मिलेगा,आनंद नहीं.अहंकार मिलेगा,ओंमकार नहीं.मेरा से मुक्त हो सकते हो,मैं से नहीं.सिद्ध हो सकते हो,बुद्ध नहीं.