सिद्धार्थ उपनिषद Page 03
*****( साधना - सूत्र )*****
सिद्धार्थ उपनिषद Page 03
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गुरुकृपा से ही सुमिरन होता है। गुरुकृपा को महसूस करते हुए सुमिरन करें। सुमिरन गुरुकृपा की कसौटी जाने।
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परमात्मा आत्मा के रुप में सबके भीतर विद्यमान है। आत्मा की शक्ति अवचेतन मेंस्थित है। वही हमारे जीवन को चलाती है। वही हुकुम है , ताओ है , धम्म है , विधि है , ऋत है। उससे जुड़कर हम स्वस्थ , समृद्ध और सहज रह सकते हैं।
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सकाम कर्म बन्धन है , सानन्द कर्म मुक्ति है। सहजानन्द से जुड़कर कर्म करना त्तृप्ति देता है। मुक्ति देते है। त्तृप्ति ही मुक्ति है।
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उदासी का मुख्य कारण हरि विस्मरण है। आनन्द का मुख्य उपाय हरि स्मरण है मस्ती में जीए । पूर्णता में जीए । सुमिरन में जीए ।
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प्रतिकूल समाचार , निन्दा , आलोचना पढ़ या सुन कर उत्तेजित न हों , सहज रहें । आसुरी शक्तियां शुरू में प्रबल होती दिखाई देती हैं , मगर अन्ततः देवीय शक्तियां ही जीतती हैं। तमाम असन्गतियो के बावजूद गोविन्द अस्तित्व को मंगलमय दिशा में ले जाने के लिए कृतसन्कल्प है।
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एक महारास चल रहा है। सबको इस नृत्य में भाग लेने का अधिकार है। खुद नाचो और दूसरों को भी नाचने दो।