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    सिद्धार्थ उपनिषद Page 02

                          *****( साधना - सूत्र  )*****         


                                   

    सिद्धार्थ उपनिषद Page 02


    (7)


    ओशोधारा में गोविन्दपद तक की यात्रा के 27 सोपान है। पुरानी चीनी कहावत है कि 100 चलते हैं  , तो कोई एक पहुंचता है। इसलिये नहीं कि यात्रा कठिन है  , बल्कि इसलिये कि कोई एक ही चलना जारी रखता है। शेष मार्ग में ही कहीं अटक जाते हैं  , भटक जाते हैं  , कथा के शिकार हो जाते हैं  , अफवाह के शिकार हो जाते हैं  , कुसन्ग में पड़ जाते हैं  , अथवा अभीप्सा की कमी के कारण राह में ही रुक जाते हैं  । उनकी स्थिति उस कुत्ते कि तरह हो जाती है  , 'जो न घर का होता है ,न घाट का।'
    तुम प्रतिदिन उठकर प्रार्थना करो की हे प्रभु , मुझे इस मार्ग पर सतत चलते रहने की प्रेरणा देते रहना,इसी जीवन में'परमपद'की यात्रा पूरी कर सकूँ। फिर गुरु अर्जुनदेव जी की तरह तुम भी गा सकोगे -- ' गुरुपरसाद परमपद पाइआ सूके कासट हरिआ। '

    (8)


    ओशोधारा में हम ध्यान से प्रेम समाधि के प्रथम 10 तलों तक आत्मा के विविध आयामों को जानते हैं ; अद्वैत से परमहंस समाधि के 5 तलों तक परमात्मा के विविध  आयामों को जानते हैं और चैतन्य सुमिरन से चरेवेति के अन्तिम 12 तलों में परमात्मा के आकाश में उड़ान भरते हैं। प्रथम 10 तलों में हम नाम के जहाज पर बैठते हैं  , बाद के 5 तलों में हमारा जहाज रनवे पर दौड़ता है , और अन्तिम 12 तलों में हम आकाश में उड़ान का मजा लेते हैं ।
    ' नानक नाम जहाज है, चढे सो उतरे पार ।'

    (9)


    अध्यात्म में दिशा तो है , मन्जिल नहीं है। हां, विश्राम है , परम विश्राम है। लेकिन फिर भी तुम मन्जिल जानने की जिद्द ही कर बैठे , तो मैं कहूंगा कि सदगुरु का चरण कमल ही अध्यात्म की मन्जिल है।
    " गुरु चरण में हो तुम्हारी  , जिन्दगी का आशिंया। "

    (10)


    मनुष्यता के इतिहास में पहली बार गोविन्दपद की साधना के क्रमबद्ध 27 सोपान उदघाटित किए गए हैं । ओशोधारा का यह सर्वथा मौलिक योगदान है। इस खोज ने हमें अध्यात्म के जेट युग में पहुंचा दिया है। विज्ञान और अध्यात्म अब कन्धे से कन्धा मिलाकर चल सकेंगे। तुमने सुना होगा मेरा ये गीत -- " गीत कई गाए हैं गोरख , कबीरा ने।
    कृष्ण , महावीर , बुद्ध , नानक और मीरा ने। ऐसे ही इस युग का गीत हमें गाना है।।"

    (11)                                  


    स्तुति - निन्दा से अप्रभावित सहज रहें । " न परेशं विलोमानि न परेशं कताकतं । अतनो व अवेखेयो , कतानि अकतानि च ।। " दूसरे के क्रत्य अथवा निन्दा - आलोचना की चिंता न कर वर्तमान परिस्थिति में हम क्या कर सकते हैं  , यही हमारे चिन्तन का विषय होना चाहिये।

    (12)                   


    समाधि आत्मा की भूमि पर विश्राम है। सुमिरन परमात्मा के आकाश में उड़ान है। समाधि साधन है , सुमिरन सिध्दि है।


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