केवल स्वर्ग ही नहीं, नर्क भी मेरे ही हैं - ओशो
मेरे प्रिय,
प्रेम।
मैं समस्त से एक हूं। सौंदर्य से भी। और कुरूपता में भी। क्योंकि, जो भी है, वह मेरे विना नहीं है। पूष्पों में ही नहीं, पापों में भी मेरी भागीदारी है। और केवल स्वर्ग ही नहीं, नर्क भी मेरे ही हैं। वृद्ध , जीसस और लाओत्सेआह! उनका वसीयतदार होना कितना आसान है। लेकिन, चंगेज, तैमूर और हिटलर? वे भी तो मेरे ही भीतर है। नहीं, नहीं-आधी नहीं, पूरी मनुष्यता ही मैं हूं। मनूष्यों का सब कुछ मेरा है। फूल भी, कांटे भी। आलोक भी, अंधकार भी। अमृत मेरा है, तो फिर विष कौन पीएगा? “अमृत के साथ विष भी मेरा है", ऐसा जो अनुभव करता है, उसे ही मैं धार्मिक कहता हूं। क्योंकि ऐसे अनुभव की पीड़ा ही, पृथ्वी के जीवन में क्रांति ला सकती है।
रजनीश के प्रणाम
२०-१२-६९ प्रति : सुश्री लक्ष्मी, बंबई
I love you OSho
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