जो विश्वविद्यालय से बचे, वे परमात्मा तक पहुंचे - ओशो
जो विश्वविद्यालय से बचे, वे परमात्मा तक पहुंचे - ओशो
जगजीवन - पढ़े लिखे लोग हैं। ये निपट गंवार हैं, ग्रामीण हैं । सभ्यता का, शिक्षा का, संस्कार का, इन्हें कुछ पता नहीं है। बड़ी सरलता से इनके जीवन में क्रांति घटी है। इन्हें बारह बारह वर्ष महावीर की भांति, या बुद्ध की भांति मौन को साधना नहीं पड़ा है। इनके भीतर कूड़ा-करकट ही न था । विद्यापीठ ही नहीं गए थे । विश्वविद्यालयों में कचरा इन पर डाला नहीं गया था । ये कोरे ही थे । संसार में तो मूढ़ समझे जाते । लेकिन ध्यान रखना, संसार का और परमात्मा का गणित विपरीत है। जो संसार में मूढ़ है उसकी वहां बड़ी कद्र है। फिर जीसस को दोहराता हूं। जीसस ने कहा है : 'जो यहां प्रथम हैं वहां अंतिम, और जो यहां अंतिम हैं वहां प्रथम हैं। 'यहां जिनको तुम मूढ़ समझ लेते हो और मूढ़ हैं; क्योंकि धन कमाने में हार जाएंगे, पद की दौड़ में हार जाएंगे। न चालबाज हैं न चतुर हैं। कोई भी धोखा दे देगा। कहीं भी धोखा खा जाएंगे। खुद धोखा दे सकें, वह तो सवाल ही नहीं; अपने को धोखे से बचा भी न सकेंगे । इस जगत् में तो उनकी दशा दुर्दशा की होगी । लेकिन यही हैं वे लोग जो परमात्मा के करीब पहुंच जाते हैं - सरलता से पहुंच जाते हैं।
- ओशो
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