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    मेरे साथ तो वही चल सकते हैं, जिनकी धारणा ही चरैवेति-चरैवेति की है - ओशो

     

    Only those who have the concept of charaiveti-chariveti can walk with me - Osho

    मेरे साथ तो वही चल सकते हैं, जिनकी धारणा ही चरैवेति-चरैवेति की है - ओशो 

    मेरे साथ सब तरह के लोग चले। जैन मेरे साथ चले, मगर वहीं तक चले जहां तक महावीर का पत्थर उन्हें ले जा सकता था। महावीर का मील का पत्थर आ गया कि वे रुक गए। और मैंने उनसे कहा, महावीर से आगे जाना होगा। महावीर को हुए पच्चीस सौ साल हो चुके। इन पच्चीस सौ सालों में जीवन कहां से कहां पहुंच गया, गंगा का कितना पानी बह गया! महावीर तक आ गए, यह सुंदर, मगर आगे जाना होगा। उनके लिए महावीर अंतिम थे; वहीं पड़ाव आ जाता है, वहीं मंजिल हो जाती है। मेरे साथ बौद्ध चले, मगर बुद्ध पर रुक गए। मेरे साथ कृष्ण को मानने वाले चले, लेकिन कृष्ण पर रुक गए। मेरे साथ गांधी को मानने वाले चले, लेकिन गांधी पर रुक गए। जहां उन्हें लगा कि उनकी बात के मैं पार जा रहा हूं, वहां वे मेरे दुश्मन हो गए। 

            मैंने बहुत मित्र बनाए, लेकिन उनमें से धीरे-धीरे दुश्मन होते चले गए। यह स्वाभाविक था। जब तक उनकी धारणा के मैं अनुकूल पड़ता रहा, वे मेरे साथ खड़े रहे। मेरे साथ तो वही चल सकते हैं, जिनकी धारणा ही चरैवेति-चरैवेति की है; जो चलने में ही मंजिल मानते हैं; जो अन्वेषण में ही, जो शोध में ही, अभियान में ही गंतव्य देखते हैं। गति ही जिनके लिए गंतव्य है, वही मेरे साथ चल सकते हैं। क्योंकि मैं तो रोज नयी बात कहता रहंगा। मेरे लिए तो रोज नया है। हर रोज नया सूरज ऊगता है। जो डूबता है वह डूब गया; जो जा चुका जा चुका। बीती ताहि बिसार दे। लेकिन यहां भी लोग आ जाते हैं, वे प्रश्न लिख कर पूछते हैं--उनके मैं जवाब नहीं देता हूं--कि आपने पंद्रह साल पहले यह कहा था। पंद्रह साल पहले जिसने कहा था वह कब का मर चुका। मैं कोई वह आदमी हूं जो पंद्रह साल पहले था? कितने वसंत आए, कितने वसंत गए! कितने दिन ऊगे, कितनी रातें आईं! कितना बीत गया पंद्रह साल में! वे पंद्रह साल पहले को पकड़े बैठे हैं। वे प्रश्न पूछते हैं कि अब हम उसको मानें कि आज जो आप कह रहे हैं उसको मानें?

    - ओशो 

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