जन्मना ब्राह्मण कैसे वस्तुतः शांत हो सकता है? - ओशो
जन्मना ब्राह्मण कैसे वस्तुतः शांत हो सकता है? - ओशो
विचारशील व्यक्ति शांत कैसे हो सकता है? जन्मना ब्राह्मण कैसे वस्तुतः शांत हो सकता है? हां, शांत होने का प्रदर्शन कर सकता है, अभिनय कर सकता है। और अभिनय ही तुम्हें दिखाई पड़ेगा। जरा कुरेदो उसे भीतर और तुम अशांति पाओगे, गहन अशांति पाओगे। जरा सा कुरेद दो और क्रोध भभक उठेगा। बिना कुरेदे तुम्हें पता नहीं चलेगा। ऊपर-ऊपर से देखा तो चंदन-वंदन लगाए, चुटैया बांधे, जनेऊ पहने--मुख में राम बगल में छुरी--मुंह को ही देखा तो छुरी तुम्हें दिखाई न पड़ेगी।
यही ब्राह्मण इस देश में, इस देश की बड़ी से बड़ी संख्या, शूद्रों को सता रहे हैं सदियों से। ये कैसे शांत लोग हैं? और अभी भी इनका दिल नहीं भरा। आज भी वही उपद्रव जारी है। अभी सारे देश में आग फैलती जाती है। और गुजरात से क्यों शुरू होती है यह आग? पहले भी गुजरात से शुरू हुई थी। तब ये जनता के बुद्ध सिर पर आ गए थे। अब फिर गुजरात से शुरू हुई है। गुजरात से शुरू होने का कारण साफ है। यह महात्मा गांधी के रेणाम है, यह उनकी शिक्षा का परिणाम है। वे दमन सिखा गए हैं। और सबसे ज्यादा गुजरात ने उनको माना है। क्योंकि गुजरात के अहंकार को बड़ी तृप्ति मिली कि गुजरात का बेटा और पूरे भारत का बाप हो गया! अब और क्या चाहिए? गुजराती का दिल बहुत खुश हुआ। उसने जल्दी से खादी पहन ली। मगर खादी के भीतर तो वही आदमी है जो पहले था। ।
महात्मा गांधी के भीतर खुद वही आदमी था जो पहले था। उसमें भी कोई फर्क नहीं था। महात्मा गांधी बहुत खिलाफ थे इस बात के कि शूद्र हिंदू धर्म को छोड़ें। उन्होंने इसके लिए उपवास किया था--आजन्म, आजीवन। मर जाने की धमकी दी थी--आमरण अनशन--कि शूद्र को अलग मताधिकार नहीं होना चाहिए। क्यों? पांच हजार सालों में इतना सताया है उसको। कम से कम उसे अब कुछ तो सत्ता दो, कुछ तो सम्मान दो। उसके अलग मताधिकार से घबड़ाहट क्या थी? घबड़ाहट यह थी कि शूद्रों की संख्या बड़ी है। और शूद्र ब्राह्मणों को पछाड़ देंगे, अगर उन्हें मत का अधिकार पृथक मिल जाए। तो मत का अधिकार रुकवाया गांधी ने। आमरण अनशन की धमकी हिंसा है, अहिंसा नहीं। और एक आदमी के मरने से या न मरने से कोई फर्क नहीं पड़ता। यूं ही मरना है। लेकिन दबाव डाला गया शूद्रों पर सब तरह का कि तुम पर यह लांछन लगेगा कि महात्मा गांधी को मरवा डाला। यूं ही तुम लांछित हो, ऐसे ही तुम अछूत हो; ऐसे ही तुम्हारी छाया भी छ जाए किसी को तो पाप हो जाता है; तुम्हें और लांछन अपने सिर लेने की झंझट नहीं लेनी चाहिए। बहुत दबाव डाला गया। दबाव डाल कर गांधी का अनशन तुड़वाया गया और शूद्रों का मताधिकार खो गया।
अब गुजरात में उपद्रव शुरू हुआ है कि शूद्रों को जो भी आरक्षित स्थान मिलते हैं विश्वविद्यालयों में, मेडिकल कालेजों में, इंजीनियरिंग कालेजों में, वे नहीं मिलने चाहिए। क्यों? 'क्योंकि स्वतंत्रता में और लोकतंत्र में सबको समान अधिकार होना चाहिए।' मगर शूद्रों को तुमने पांच हजार साल में इतना दबाया है कि उनके बेचारों के समान अधिकार का सवाल ही कहां उठता है? 'सबको गुण के अनुसार स्थान मिलना चाहिए।'
लेकिन पांच हजार साल से जिनको किताबें भी नहीं छूने दी गईं, जिनको किसी तरह की शिक्षा नहीं मिली, वे ब्राह्मणों से, क्षत्रियों से, वैश्यों से कैसे टक्कर ले सकेंगे? उनके बच्चे तो पिट जाएंगे। उनके बच्चे तो कहीं भी नहीं टिक सकते। उनके बच्चों को तो विशेष आरक्षण मिलना ही चाहिए। और यह कोई दस-बीस वर्ष तक में मामला हल होने वाला नहीं है। पांच हजार, दस हजार साल जिनको सताया गया है, तो कम से कम सौ, दो सौ साल तो निश्चित ही उनको विशेष आरक्षण मिलना चाहिए, ताकि इस योग्य हो जाएं कि वे खुद सीधा मुकाबला कर सकें। जिस दिन इस योग्य हो जाएंगे, उस दिन आरक्षण अपने आप बंद हो जाएगा। लेकिन आरक्षण उनको नहीं मिलना चाहिए, इसके पीछे चालबाजी है, षडयंत्र है। षडयंत्र वही है, क्योंकि सबको जाहिर है। जिनके पैर दस हजार साल तक तुमने बांध रखे और अब दस हजार साल के बाद तुमने उनकी पैर की जंजीर तो अलग कर ली, तुम कहते हो, सबको समान अधिकार है, इसलिए तुम भी दौड़ो दौड़ में। लेकिन जो लोग दस हजार साल से दौड़ते रहे हैं, धावक हैं, उनके साथ जिनके पैर दस हजार साल तक बंधे रहे हैं इनको दौड़ाओगे, तो सिर्फ फजीहत होगी इनकी। ये दो-चार कदम भी न चल पाएंगे और गिर जाएंगे। ये कैसे जीत पाएंगे? ये प्रतिस्पर्धा में कैसे खड़े हो पाएंगे?
थोड़ी शर्म भी नहीं है इन लोगों को जो आरक्षण-विरोधी आंदोलन चला रहे हैं। और यह आग फैलती जा रही है। अब राजस्थान में पहुंच गई; अब मध्यप्रदेश में पहुंचेगी। और एक दफे बिहार में पहंच गई तो बिहार तो बुद्धओं का अडडा है। बस गुजरात के उल्लू और बिहार के बुद्ध अगर मिल जाएं, तो पर्याप्त। इस देश की बरबादी के लिए फिर कोई और चीज की जरूरत नहीं है। और ज्यादा देर नहीं लगेगी। जो बिहार के बुद्ध हैं वे तो हर मौके का उपयोग करना जानते हैं। जरा बुद्धू हैं इसलिए देर लगती है उनको। गुजरात से उन तक खबर पहुंचने में थोड़ा समय लगता है, मगर पहुंच जाएगी। और एक दफा उनके हाथ में मशाल आ गई तो फिर बहुत मुश्किल है। फिर उपद्रव भारी हो जाने वाला है। और यह आग फैलने वाली है, यह बचने वाली नहीं है। और इस सब आग के पीछे ब्राह्मण है। उसको डर पैदा हो गया है। ब्राह्मण ने बड़ी ऊंची तरकीब की थी।
- ओशो
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