अतीत है तुम्हारी पीछे पड़ने वाली छाया और भविष्य है तुम्हारी आगे पड़ने वाली छाया - ओशो
अतीत है तुम्हारी पीछे पड़ने वाली छाया और भविष्य है तुम्हारी आगे पड़ने वाली छाया - ओशो
अतीत है तुम्हारी पीछे पड़ने वाली छाया और भविष्य है तुम्हारी आगे पड़ने वाली छाया। छायाओं का क्या भरोसा? तुम आगे हटते हो, छाया और आगे हट जाती है। छाया माया है। इस छाया को तो तुम माया नहीं कहते, संसार को माया कहते हो। जो है उसको माया कहते हो और जो नहीं है उसके साथ विवाह रचाए बैठे हो, उसके साथ गठबंधन कर लिया है। और जो 'नहीं है। में जीएगा, वह खाली ही रह जाएगा, रिक्त ही मरेगा। कभी संयोग से यह भविष्य पूरा भी हो जाए...याद रखना, संयोग से; तुम्हारे किए से कुछ भी नहीं हो सकता। तुम बहुत छोटे हो, अस्तित्व बहुत बड़ा है। जैसे बूंद सागर से लड़े, क्या जीतने की उम्मीद? जैसे पत्ता उसी वृक्ष से लड़े जिससे उसे रसधार मिल रही है, क्या कोई संभावना है विजय की? हार सुनिश्चित है। लेकिन कभी भूले-चूके, दांव कहीं ठीक ही लग जाए, तो और भी बड़ी हार, और भी बड़ी पराजय, और भी बड़ा विषाद घेर लेता है। क्योंकि जीत तो हाथ लगती है, लेकिन जीत ने जो भरोसे दिए थे, जो वायदे किए थे, वे कुछ भी पूरे नहीं होते। जिस दिन जीत हाथ में लगती है, उस दिन पता चलता है: जीत से बड़ी कोई हार नहीं। क्योंकि जीवन जिसके लिए लगा दिया, जिसे सोना समझ कर दौड़े थे...।
- ओशो
कोई टिप्पणी नहीं