चलने वाले पहुंचते हैं - ओशो
चलने वाले पहुंचते हैं - ओशो
चलने के लिए साहस चाहिए। और चलने के लिए तर्क साहस नहीं देता। तर्क बहुत कायर है। तर्क बहुत नपुंसक है। चलने के लिए प्रेम चाहिए। चलने के लिए प्रीति के सिवा और कोई उपाय नहीं। कुछ लोग बुद्ध के प्रेम में पड़ गए, इसलिए चल पड़े; इसलिए नहीं कि बुद्ध के तर्क से सिद्ध हुआ कि वे जो कहते हैं वह सही है। कुछ लोग लाओत्सु के प्रेम में पड़ गए और चल पड़े। चल पड़े तो पहुंचे। हृदय की सुनो। और हृदय की भाषा और है; वह तर्क की भाषा नहीं है, वह प्रेम की भाषा है। बुद्धि को जरा बाद दो, एक तरफ हटा कर रखो। बुद्धि सिर्फ विवाद पैदा करती है, इसलिए उसे बाद दो। बुद्धि को थोड़ा हटाओ और थोड़े प्रेम को जगने दो। प्रेम में दो पत्ते भी ऊग आएं तो तुम्हारे जीवन में क्रांति सुनिश्चित है। प्रेम के दो पत्ते काफी हैं विचार के बहुत ऊहापोह के मुकाबले। विचार के पहाड़ भी किसी काम नहीं आते। सिर्फ उनके नीचे लोग दब जाते हैं और मर जाते हैं। पलटू यह कह रहे हैं कि मान लो बहुतेरे हैं घाट। मत विवाद करो। जो जिस घाट से जाना चाहे, जाने दो।
तुम्हें जो प्रीतिकर लगे उस पर चल पड़ो। यह नदी एक है। हमेशा यात्रा का ध्यान करो चलना है। चलने वाले पहुंचते हैं। और अगर भटकते हैं तो भी पहुंच जाते हैं, क्योंकि हर भटकन सिखावन बनती है।
- ओशो
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