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    मन से विश्वास की जड़ें उखाड़ कर फेंक देने पर ही विचार के बीज बो सकते हैं - ओशो

    Seeds of thought can be sown only by uprooting the roots of faith from the mind - Osho


    मन से विश्वास की जड़ें उखाड़ कर फेंक देने पर ही विचार के बीज बो सकते हैं - ओशो 

    एडिंग्टन ने अपने संस्मरणों में एक बहुत अदभुत बात लिखी है। उसने लिखा है कि मैं सारी भाषा में खोजबीन करके एक शब्द को बिलकुल झूठ पाया और वह शब्द है रेस्ट, विश्राम। रेस्ट जैसी कोई स्थिति जगत में है ही नहीं, एक क्षण को भी कोई चीज ठहरी हुई नहीं है। या तो आगे जा रही है या पीछे जा रही है--जा रही है। बुद्ध तो कहते थे, है शब्द का प्रयोग ही गलत है। क्योंकि प्रत्येक चीज हो रही है, है की स्थिति में कोई चीज नहीं है। हम कहते हैं, नदी है। गलत कहते हैं; नदी हो रही है। हम कहते हैं, बूढा है। गलत कहते हैं; बूढा हो रहा है।

            हम कहते हैं, जवान है। गलत कहते हैं; जवान हो रहा है। - हर चीज होने की हालत में है, है की हालत में कोई भी चीज नहीं है। कोई चीज कहीं ठहरी हुई नहीं है, सब चीजें हो रही हैं। लेकिन भारत विश्वास को पकड़ कर, होने की प्रक्रिया छोड़ कर, है की प्रक्रिया में विश्राम करने लगा। हां, विश्वास एक जरूर ऐसी चीज है जो है। एडिंग्टन अगर मुझे मिलता तो उससे मैं कहता कि तुम गलत कहते हो, एक चीज है जो रेस्ट में सदा रहती है, वह है बिलीफ। वह कभी होती नहीं, वह जहां है वहीं रहती है। विश्वास जो है वह सदा ठहरा हुआ है। उसमें कोई गति नहीं, कोई कंपन नहीं, कोई आगे-पीछे कुछ भी नहीं है; वह जहां है वहीं है। इसलिए विश्वास जगत में सबसे मरी हुई चीज है। क्योंकि जिंदगी का लक्षण है, होना; मृत्यु का लक्षण है, न होने की स्थिति में हो जाना। विश्वास मरी हुई चीज है। लेकिन मरी हुई चीजें कन्वीनिएंट होती हैं, सुविधापूर्ण होती हैं। अगर आपके घर में दस आदमी जिंदा हैं तो बहत तरह के उपद्रव होंगे, और अगर दस आदमी मरे हुए हैं तो कोई उपद्रव नहीं होगा। मरघट पर कोई उपद्रव होते हैं? कोई उपद्रव नहीं होता।

            जिंदगी के साथ उपद्रव है, मृत्यु के साथ कोई उपद्रव नहीं है। हमें शायद यह समझ में आ गया है कि विश्वास के साथ सुविधा से जी सकेंगे। नहीं, मैं आपसे कहता हूं, विश्वास के साथ सुविधा से मर सकेंगे। जीना हो तो जीना तो सुविधा के साथ नहीं हो सकता; जीना हो तो श्रम के साथ होगा; जीना हो तो परिवर्तन के साथ होगा; जीना हो तो संघर्ष के साथ होगा। विचार के साथ विद्रोह है, विश्वास के साथ संतोष है। विचार के साथ गति है, विश्वास के साथ मृत्यु है। विश्वास के साथ अतीत है, विचार के साथ भविष्य है। हमें भारत के मन से विश्वास की जड़ें उखाड़ कर फेंक देनी पड़ें तो हम विचार का बीज बो सकते हैं, अन्यथा नहीं संभव हो पाएगा। और अगर हमने विश्वास की जड़ें भीतर रहने दीं और ऊपर से विचार के बीज बो दिए, तो वह जो भारत का गहरा विश्वासी मन है, वह विचार पर भी विश्वास कर लेता है।

    - ओशो

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