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    संताति नियमन से बड़ी कोई इमरजेंसी नहीं है - ओशो

    There is no greater emergency than the regulation of progeny - Osho


     संताति नियमन से बड़ी कोई इमरजेंसी नहीं है - ओशो 

    पुरानी कहानी आपने सुनी होगी ईसाइयों की, नोह की। महाप्रलय हुई और सारे लोग मर गए। और परमात्मा ने नोह से कहा कि यह नाव तू संभाल और एक-एक प्राणि-जाति के एक-एक जोड़े को इसमें बचा ले। और यह नाव को ले जा उस जगह जहां कि प्रलय नहीं है। वहां इतने लोगों को बचा ले ताकि फिर से सृष्टि हो सके। नोह की कहानी सच है या झूठ, कहना मुश्किल है। वैसे झूठ कहना बहुत मुश्किल है, क्योंकि नोह की कहानी दुनिया की समस्त जातियों में अलग-अलग रूपों में प्रचलित है। जब दुनिया इकटठी नहीं थी और कोई एकदूसरे को नहीं जानता था तब भी वह कहानी प्रचलित है, महाप्रलय की, कि कभी महाप्रलय हुई, जब सब इब गया और सिर्फ स्पेसिमेन बचाए जा सके। एक आदमी, एक औरत; एक गधा, एक गधी; एक बंदर, एक बंदरिया; इस तरह स्पेसिमेन बचा कर फिर सब कार्य शुरू करना पड़ा। 

            इसकी संभावना बढ़ती जाती है कि अगर तीसरा महायुद्ध पृथ्वी पर होता है तो पृथ्वी पर बचने का तो कोई उपाय नहीं होगा; कुछ लोगों को पृथ्वी के बाहर ले जाना पड़ेगा। मगर यह सब जरूरी नहीं है, यह सब रोका जा सकता है। रोकने का क्रम वहां है जहां संतति हम पैदा कर रहे हैं। लेकिन हम वैकल्पिक रूप से रोक रहे हैं। हम वॉलंटरिली रोकने के लिए लोगों से कह रहे हैं--समझा रहे हैं, स्वेच्छा से समझ जाओ। नहीं, स्वेच्छा से समझने का मामला नहीं है यह; यह कम्पलसरी हो तो ही संभव हो सकता है। अनिवार्य हो! वैकल्पिक नहीं, ऐच्छिक नहीं, ऐसा नहीं कि हम आपको समझा रहे हैं कि आप दो या तीन बच्चे...या भी । लगाने से खतरा है। या बिलकुल नहीं चाहिए बीच में; क्योंकि या का कोई अंत नहीं है। दो बच्चे यानी दो बच्चे। तीसरा बच्चा यानी नहीं। और यह 'नहीं' आपकी इच्छा पर छोड़ी गई तो हल होने वाला नहीं है। क्योंकि आदमी की चेतना इतनी कम है कि उसे पता ही नहीं है कि कितनी बड़ी समस्या है। यह उस पर नहीं छोड़ा जा सकता है। यह अनिवार्य करना होगा। इसे इतनी बड़ी अनिवार्यता देनी होगी जैसे इमरजेंसी की अनिवार्यता होती है। इससे बड़ी कोई इमरजेंसी नहीं है। और वैकल्पिक, स्वेच्छा से, वॉलंटरिली जो हम करवा रहे हैं उसका नुकसान भी बहुत है, उसका नुकसान बहुत गहरा है।

     - ओशो 

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