बड़ी बीमारी मिल जाए तो छोटी बीमारी भूल जाती है - ओशो
मेरे गांव में एक जूते की दुकान थी। एक मुसलमान--थोड़े झक्की किस्म के--उनकी प्रसिद्धि थी: हिचकी की बीमारी ठीक करना। उनकी दुकान वगैरह तो कम ही चलती थी मगर सत्संग वहां बहुत होता था। अब दुकान न चले तो और हो भी क्या? तो मेरा भी वहां अड्डा कभी-कभी होता था। वे मुझसे डरते बहुत थे। वे मेरी हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते थे कि देखो भाई, मुझे भड़काओ मत। ऐसी बातें मत कहो कि मुझे फिर रात-रात भर नींद नहीं आती, कि मैं दूसरों की हिचकियां बंद कर देता हूं, तुम मेरी चला देते हो। तो कभी जब मैं उनके सत्संग में बैठा होता, मजबूरी में उन्हें मेरा सत्संग करना पड़ता था। वे तो हाथ जोड़जोड़ कर कहते थे कि अब जाओ, ग्राहक आते होंगे। अब वे फलाने पंडित जी आ रहे हैं, अब तुम जाओ, नहीं तो झगड़ा खड़ा हो जाएगा।
एक-दो बार ऐसा मौका आया, जब मैं उनके पास बैठा था, कोई हिचकी का मरीज आया। हिचकी के मरीज दूर-दूर से आते थे। और वे करते क्या थे? उसको सामने बिठा लेते, और उनकी जूतों की दुकान थी सो मक्खियां वहां भनभनाती रहतीं। जूते-चप्पलों का ढेर, मक्खियां भनभनाती, जूतों की बास। वे एक गिलास भर पानी लेते और एक मक्खी पकड़ कर दोनों पंख तोड़ कर उस गिलास में डालते--उसी आदमी के सामने--और कहते: पी जा!' पीने के पहले ही हिचकी बंद हो जाती। वह गिलास में जो कार्यक्रम करते थे, दवाई डालते थे! मैंने उनसे पूछा, 'इसका राज?' उन्होंने कहा, 'इसका राज साफ है। अरे कौन हिचकी लेगा ऐसी हालत देख कर, जब इसको पीना पड़े! वह यह कार्यक्रम देख कर ही भूल जाता है हिचकी लेना। ऐसा मौका तो कभी-कभी आ जाता है, कुछ जिद्दी आ जाते हैं कि फिर भी हिचकी लिए जाते हैं, तो फिर उनको पीना पड़ता है। तो पीकर बंद हो जाती है। और मैं उनसे कह देता हूं कि अगर बंद न हो तो कल फिर आ जाना, क्योंकि और भी बड़ी दवाई हैं मेरे पास। जब मक्खी से बंद नहीं हो तो तिलचट्टा। जब उससे भी बंद न हो तो चूहा। तुम घबड़ाओ मत, बंद करके रहूंगा! ऐसे-ऐसे रस निचोइंगा कि हिचकी बंद ही हो जाएगी। स्वभावतः, जब बड़ी बीमारी मिल जाए तो छोटी बीमारी भूल जाती है।
- ओशो
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