हिंदुस्तान में अगर पिछले दो हजार वर्षों में किसी आदमी ने हिंदुस्तान के जीवन को गति दी तो वह आदमी गांधी था - ओशो
हिंदुस्तान में अगर पिछले दो हजार वर्षों में किसी आदमी ने हिंदुस्तान के जीवन को गति दी तो वह आदमी गांधी था - ओशो
यह हमारा देश तैयार उत्तरों से पीड़ित है। यहां सब उत्तर तैयार हैं और कोई आदमी जिंदगी के किसी सवाल को सीधा एनकाउंटर, सीधा साक्षात करने के लिए तैयार नहीं है। वे चाहे उत्तर बुद्ध ने तैयार किए हों, चाहे महावीरने, चाहे कृष्ण ने, चाहे अभी गांधी ने, वे उत्तर सब हमारे पास तैयार हैं और उन उत्तरों को पकड़ कर हम बैठे हैं। इस देश की आत्मा इसीलिए अविकसित रह गई है। इस देश की आत्मा इसीलिए पत्थर हो गई है कि उसने फूल होने का गुण खो दिया है। उसने परिवर्तन की क्षमता खो दी है। वह ठहर गई है, अटक गई है, स्टैटिक हो गई है।
और अगर कोई कहे कि छोड़ दो तैयार उत्तरों को तो हम कहेंगे, हमारे महात्माओं को छीनते हो? हमारे गुरुओं को छीनते हो? हमारे तीर्थंकरों को छीनते हो? बड़े दुश्मन हो हमारे! कोई आपके तीर्थंकर नहीं छीन रहा है; कोई आपके महात्मा नहीं छीन रहा है, लेकिन आप इतने जोर से पकड़े हए हो कि आपको लगता है कि कहीं छिन न जाए। पकड़ने की वजह से यह डर पैदा होता है कि कहीं छिन न जाए! पकड़ना छोड़ दो, कोई तीर्थंकर नहीं छिनेगा, कोई महात्मा नहीं छिनेगा। वे अपनी हैसियत से कुछ हैं, आपके पकड़ने की वजह से कुछ भी नहीं हैं। लेकिन हम जोर से पकड़े हुए हैं। हम उनको सहारा समझे हुए हैं। गांधी ने कुछ उत्तर दिए थे और गांधी एक अदभुत आदमी थे। मैं मानता हूं कि गांधी ने हिम्मत की थी, उनके पास तैयार उत्तर नहीं थे। हिंदुस्तान में अगर पिछले दो हजार वर्षों में किसी आदमी ने हिंदुस्तान के जीवन को गति दी तो वह आदमी गांधी था। और गति देने का एकमात्र कारण था कि उस आदमी के पास तैयार उत्तर नहीं थे। हिंदुस्तान के दूसरे सारे नेताओं के पास तैयार उत्तर थे, गांधी के पास तैयार उत्तर नहीं था। इसलिए गांधी हिंदुस्तान की जिंदगी में बड़े बेमौजूं थे।
हिंदुस्तान के सभी नेता गांधी से परेशान रहे। हिंदुस्तान के बड़े नेताओं ने गांधी के प्रति पीछे छिप कर हंसी और मजाक भी की कि यह आदमी गड़बड़ है, क्योंकि यह आदमी कब क्या कहेगा, कब क्या करेगा, इसका कोई भरोसा नहीं। यह आदमी बदल जाता है। यह आदमी सुबह कुछ कहता है, सांझ कुछ कहता है। पिछले वर्ष कुछ कहा था, इस वर्ष कुछ कहने लगता है। यह आदमी भरोसे के योग्य नहीं है। लेकिन गांधी, अकेले आदमी ने इस मुल्क को इतनी गति दी जितनी इस मुल्क के हजारों-लाखों महात्मा मिल कर इसको नहीं दे सकते थे। कैसे दी इस आदमी ने गति? इस आदमी के गति देने का बुनियादी सूत्र यह था कि इस आदमी के पास तैयार उत्तर नहीं था। यह आदमी जिंदगी को जीने की कोशिश किया; जिंदगी को सामना करने की कोशिश की। जिंदगी से जूझ कर जो उत्तर आया वह इस आदमी ने दिया। लेकिन वह उत्तर भी इसने कभी नहीं माना कि यह अल्टीमेट है, चरम है। इतना ही कहा कि अभी यह सूझता है। कल दूसरा भी सूझ सकता है, परसों तीसरा भी सूझ सकता है।
हिंदुस्तान के किसी महात्मा ने कभी इस तरह की भाषा नहीं बोली थी, हिंदुस्तान के महात्मा हमेशा चरम भाषा बोलते हैं। वे कहते हैं कि यह आखिरी उत्तर है, यह सर्वज्ञ की वाणी है। बस इसके आगे अब कुछ भी नहीं है, यह अंतिम हो गया। गांधी ने बड़ी हिम्मत की और कहा कि यह सर्वज्ञ की वाणी नहीं है, एक खोजी की वाणी है; एक खोजने वाले की। इसलिए अपनी किताब को नाम दिया: सत्य के प्रयोग। सत्य की उपलब्धि नहीं, एक्सपेरिमेंट्स विद दुथ। भूल-चूक की संभावना है प्रयोग में। भूल-चूक की संभावना को स्वीकार किया। इस आदमी ने एक अदभुत काम किया। हम इस आदमी के पीछे फिर पड़ गए हैं कि इसने जो अदभुत काम किया था उसको खत्म कर दें, उसकी हत्या कर दें। हम कहते हैं, गांधी का वाद बनाएंगे, हम उत्तर तैयार रखेंगे। जो गांधी ने उत्तर दिया था वही उत्तर हम आगे भी देंगे। बस गांधी की हत्या शुरू हो गई। गांधी का वाद यानी गांधी की हत्या। जिस आदमी का वाद बनाओगे उसी की हत्या हो जाएगी।
- ओशो
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