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    आनंद की सुगंध का नाम प्रेम है - ओशो

     

    The name of the fragrance of bliss is love - Osho

    आनंद की सुगंध का नाम प्रेम है - ओशो 

    ब्लावटस्की ने सारी दुनिया की यात्रा की। वह भारत में थी, और दूसरे मुल्कों में थी । लोग हमेशा देख कर हैरान हुए, वह एक झोला अपने साथ रखती थी और जब गाड़ियों में बैठती तो उसमें से कुछ निकाल कर बाहर फेंकती रहती। लोग उससे पू छते कि यह क्या है? वह कहती कि कुछ फूलों के बीज हैं। अभी वर्षा आएगी, फूल खिलेंगे, पौधे निकल आएंगे। लोगों ने कहा, लेकिन तुम इस रास्ते पर दुबारा निकलेगी, इसका तो कुछ पता नहीं । उसने कहा, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फूल खिलेंगे, कोई उन फूलों को देखकर आनंदित होगा, यह मेरे लिए काफी आनंद है। उसने कहा-जीवनभर बस एक ही कोशिश की, जब से मुझे फूल मिले हैं, तब से फू ल सबको बांट दूं, बस यही चेष्टा रही है। और जिस व्यक्ति को भी फूल मिल जाएं गे, वह उनको बांटने के लिए उत्सुक हो जाएगा।

            आखिर बुद्ध या महावीर क्या बाप रहे हैं? जितने वर्ष तक बुद्ध जीवित रहे क्या बां टते रहे? किस चीज को बांटने के लिए भाग रहे हैं और दौड़ रहे हैं? कोई आनंद उपलब्ध हुआ है, उसे बांटना जरूरी है। साधारण आदमी, दुखी आदमी, सुख को पा ने के लिए दौड़ता है और जो व्यक्ति प्रभु को अनुभव करता है, वह सुख को बांटने के लिए दौड़ने लगता है। साधारण आदमी, सुख को पाने के लिए दौड़ता है और जो व्यक्ति प्रभु को अनुभव करता है, वह सुख को बांटने के लिए दौड़ने लेता है। एक की दौड़ का केंद्र वासना होती है, दूसरे की दौड़ का केंद्र करुणा हो जाती है। आनंद करुणा को उत्पन्न करता है और जितना आनंद भीतर फलित होता है, उतनी आनंद की सुगंध चारों तरफ फैलने लगती है। आनंद की सुगंध का नाम प्रेम है। जो व्यक्ति भीतर आनंदित होता है, उसका सारा आचरण प्रेम से भर जाता है। वयक्ति अंतर में आनंद को उपलब्ध हो तो आचरण में प्रेम प्रकट होने लगता है। आ नंद का दीया जलता है तो प्रेम की किरणें सारे जगत में फैलने लगती है। और यदि दुख का दिया भीतर हो तो सारे जगत में अंधकार फैलता है।

     - ओशो 

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