संन्यास नया जन्म है - ओशो
प्रिय योग यशा,
प्रेम।
नये जन्म पर मेरे शुभाशीष । संन्यास नया जन्म है। स्वयं में, स्वयं से, स्वयं का। वह मृत्यु भी है। साधारण नहीं-महामृत्यु। उस सब की जो तू कल तक थी। और जो तू अब है, वह भी प्रतिपल मरता रहेगा। ताकि, नया जन्मे-नया जन्मता ही रहे। अब एक पल भी तू तू नहीं रह सकेंगी। मिटना है प्रतिपल और होना है प्रतिपल। यही है साधना। नदी की भांति जीना है। सरोवर की भांति नहीं। सरोवर गृहस्थ है। सरिता संन्यासी है।
रजनीश के प्रणाम
११-११-१९७० प्रति : मा योग यशा, विश्वनीड, संस्कार तीर्थ, आजोल गुजरात
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