स्वयं को पूर्णतया शून्य कर ले - ओशो
प्रिय मधु,
प्रेम।
कम्यून की खबर हृदय को पूलकित करती है। वीज अंकुरित हो रहा है। शीघ्र ही असंख्य आत्माएं उसके वृक्ष तले विश्राम पाएंगी। वे लोग जल्दी ही इकट्ठे होंगे-जिनके लिए कि मैं आया हूं। और तू उन सब की आतिथेय होने वाली है। इसलिए, तैयार हो-अर्थात स्वयं को पूर्णतया शून्य कर ले। क्योंकि, वह शून्यता ही आतिथेय (भवेज) बन सकती है। और तू उस ओर चल पड़ी है-नाचती, गाती, आनंदमग्न । जैसे सरिता सागर की ओर जाती है। और मैं खुश हूं।सागर निकट है-वस दौड़...और दौड़...और दौड़!
रजनीश के प्रणाम
१५-१९१९७० प्रति : मा आनंद मधु, संस्कार तीर्थ, आजोल, गुजरात,
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